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समय कभी रुकलानहीं है। परिवर्तन प्रकृति का नियम है। प्राचीन काल में मनुष्य की आवश्यकताओं की पूर्ति कल्पवृक्ष किया करते थे। कल्पवृक्षों की संख्या बहुत कम हो गई।आदिकाल का मानव दुखी रहने लगा। उस समय अयोध्या में महाराजनाभिरायरॉज्यकरते थे।और भारतवर्ष अजनाभवर्ष कहया स्वामी,हम बहुत दखी हैं। हमें अपना
दुरव बताने की आज्ञा दीजिए।
काय करते थे। और आरतवर्ष अजलानवर्ष कह
भाषभदेव
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प्रजाजनों में बहुत वृद्ध हो गया हूं। राज्य का संचालन मेरा पुत्र ऋषभदेव करता है, तुम सब उसी के पास जाओ, वही तुम्हारे कष्टों को दूर
करेगा।
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ये कैसी आवाजें आ रही है? क्या मेरे राज्य में प्रजा दुखी है। प्रहरी जाओ और प्रजाजनोंको दरबार
में बुलाकर लाओ।
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'चित्रः बनेसिंह जी.एस.राजावतं, विजय गीताश्री,अक्षरः शरद