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युग की श्रेष्ठ सुन्दरी नर्तकी नीलांजनातिलोतमा नृत्य कर रही है।
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जैन चित्रकथा
यह नीलांजना नहीं है, नीलांजना मर चुकी है, किन्तु नीलांजना जैसी लगती है। यह देवराज, इन्द्र का कौशल लगता है।
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प्रीति मेरी कर लो स्वीकार नहीं है प्रेम कोई व्यापार पता नहीं किस दिन लुट जाए सांसों का व्यापार प्रीति मेरी कर लो स्वीकार,
अरे। नीलांजना मर गई।
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जीवन का कोई विश्वास नहीं है, पता नहीं मृत्यु कब आ जाए। ये रिश्ते-जाते सब झूठे है। जो भी मिलता है खोना पड़ता है। मुझे आत्म कल्याण करना चाहिए। सत्य की खोज करनी चाहिए।