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________________ जैन चित्रकथा भरत यह रोने का,मोहग्रस्त होने का समयनहीं है। निर्वाण महोत्सव मनाओ। P ODEOX जय ऋषभदेव तीर्थंकर आदि ब्रह्मा,तुम आदि देव तुम मनु, तुम ही तीर्थंकर जय ऋषभदेव तीर्थंकर DOOS प्रजा सुखी है,राज्य में शांति है। पुत्र अर्ककीर्ति राज भार संभालने योग्य है। मुझे भी आत्म कल्याण के लिए सन्यासी बनना चाहिए। रामा के रूप में मैं अपना कर्तव्य पूरा कर चुका। IASY आदि तीर्थंकर ऋषभदेव मेरी साधना को सफल बनावे । सबाट ऋषभदेव, कामदेव बाइबलि, चक्रवर्ती सम्राट भरत का यह संसार सदेव ऋणी रहेगा। आदिकाल के इन तीन रनों के चरणों में कोटि नमन । 24
SR No.033237
Book TitleRushabhdev
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMishrilal Jain
PublisherAcharya Dharmshrut Granthmala
Publication Year
Total Pages28
LanguageHindi
ClassificationBook_Comics, Moral Stories, & Children Comics
File Size7 MB
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