Book Title: Rushabhdev
Author(s): Mishrilal Jain
Publisher: Acharya Dharmshrut Granthmala

View full book text
Previous | Next

Page 24
________________ प्रभु आपकी जय हो। सन्यासी बाहुबलि बहुत कठोर तपस्या कर रहे हैं किन्तु उन्हें केवलज्ञान प्राप्त नहीं हो रहा है। इसका क्या कारण हैं? जैन चित्रकथा हे भव्य सन्यासी बाहुबलि की आत्मसाधना के बीच एक विचार आ जाता है कि वह तेरी राज भूमि पर खड़ा तपस्या कर रहा है। जाओ उस महान तपस्वी के चरणों में जाओ। हे स्वामी। चक्रवर्ती सम्राट आपके श्री चरणों में प्रणाम करता है। यह पृथ्वी मेरे जन्म के पहले भी थी और मेरे बाद में भी रहेगी। पृथ्वी किसी की भी नहीं है, यह प्रकृति की देन है। 22 बाहुबलि को केवलज्ञान प्राप्त हो गया। Bra Kaheliy निरन्तर साधना से मुक्ति का द्वार खुलता है।

Loading...

Page Navigation
1 ... 22 23 24 25 26 27 28