Book Title: Rushabhdev
Author(s): Mishrilal Jain
Publisher: Acharya Dharmshrut Granthmala
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मैं किसी पूर्व चक्रवर्ती सम्राट का नाम मिटाकर अपना नाम लिख रहा हूँ। मेरा चक्रवती
होने का गर्व मिथ्या है।
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ऋषभदेव स्वामी। चक्ररत्न शास्त्रागारमें प्रवेशनहीं सभी करता। राजाओं ने हमारी
आधीनता स्वीकार कर ली।क्या कोई राज्यजीतना शेष है।
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सम्राटासमीने आपकी आधीनता स्वीकार कर ली किन्तु आपके छोटे भाई पौढ़नपुरके सम्राट
बाहुबलि आपको नमस्कार करने नहीं आए।
सम्राट बाहबलि की जय हाँआपके. बड़े भैया भरत विश्व विजय कर लौट आए हैं आपको याद किया है।
DO 2006
तब कोई चिन्ता की बात नहीं गोम्मटेश्वरबाहुबलि मेरा सबसे सुन्दर और स्वाभिमानी प्यारा भाई है। उसे सन्देश भेज दो, सन्देश पाते ही आ जाएगा।
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