Book Title: Rushabhdev
Author(s): Mishrilal Jain
Publisher: Acharya Dharmshrut Granthmala

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Page 14
________________ जैन चित्रकथा विश्व विजय की यात्रा पूरी हुई। सेनाओं को अयोध्या राजधानी लौटने के आदेशदो। स्वामी आपकी कीर्ति, पराक्रम और सैन्यदलकी विशालता देखकर सभी ने आधीनता स्वीकार कर ली है।। काला COO Manawonly OTO KO स्वामी। यह वृषभाचल पर्वत है विश्व विजय के पश्चात प्रत्येक चक्रवती पर्वल पर विजय पटिका पर अपमानाम अंकित करता है। तुम्हारी सलाह उचित है। मुझे वृषभाचल पर्वत की पट्टिका पर अपना नाम अंकित करना चाहिए। अरे। इस विजय पट्रिका पर तोनाम लिखने का भी स्थान नहीं। मेरा भ्रम था,मैं सोचता था मैं प्रथम चक्रवर्ती हूं। किन्तु कोटि-कोटि वर्ष पुरानी धरती पर अनेक चक्र वर्ती हो चुके हैं। ANAAAAM 5000

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