Book Title: Rushabhdev
Author(s): Mishrilal Jain
Publisher: Acharya Dharmshrut Granthmala

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Page 10
________________ नहीं भैया मेरी बात 'ध्यान से सुनो। आने वाले सन्यासी अयोध्यापति थे। राजपाट त्याग कर सन्यासी हुए हैं। मैं तुम्हें समझाता हूं उस प्रकार उन्हें भोजन को आमंत्रित करना है । अद्भुत सन्यासी आया है। जैन चित्रकथा आप जैसा समझाएं, मैं उसका पालन करूंगा। WO श्रमण ऋषभदेव अंजुलि से गन्ने के रस का आहार ले रहे हैं। 8 सन्यासी ऋषभदेव का हस्तिनापुर में प्रवेश 100000 हे स्वामी नमोस्तु | हे स्वामी नमोस्तु आहारजल शुद्ध हैं। भोजन (शाला में पधारिये। हिमालय पर्वत पर ऋषभदेव साधनारत

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