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... 'बाज' और 'विहग क्रमशः 'सबल' और 'निर्बल' के प्रतीक के रूप में.... व्यक्त हुए हैं, यहाँ भरत पुत्र शार्दुल का पराक्रम विवेचित हुआ है :
'झपटा जैसे बाज विहग पर, किया सुगति के सिर का छेद।' ऋ.पृ.-264.
मनोभावों का विस्तार असीमित है। आक्रोश, करूणा, प्रीति, बैर, श्रद्धा एवं अन्य मनः स्थितियों का भी प्रतीकात्मक वर्णन प्रशंसनीय है :
'अग्नि के आताप में क्या, फसल बढ़ती है कभी ? आक भी हिमदाह-बल से, पलक में जलते सभी। ऋ.पृ.-241.
यहाँ अग्नि का आताप-आक्रोश, फसल-संबंध, आक–धैर्य, हिमदाह आक्रमण तथा जलना-विनाश के प्रतीक का वाहक है।
'श्रद्धा भाव से जहाँ सम्बन्ध जुड़ते हैं वहीं 'संशय भाव' से संबंधों में खटाई भी पड़ जाती है :
श्रद्धा ने हिम के कण-कण को जोड़ा है।
संशय ने मन के कण-कण को तोडा है।
ऋ.पृ.-245.
आज समाज में दो धाराएँ दिखाई दे रही हैं जिसमें एक है - शोषक है - शोषित। शोषक के प्रतीक के रूप में 'अमरबेल' और शोषित
और दर
के प्रतीक के रूप में 'वृक्ष' का प्रयोग हुआ है। यह कथन शासक के हवाले से किया गया है जो नीतिगत है :
अमर बेल ने आरोहण कर, किया वृक्ष का शोष। वह कैसा प्राणी जो करता, पर-शोषण, निज पोष।।
ऋ.पृ.-80.
जनता के कंधे पर चढ़कर, चलने का अधिकार न हो। सहजीवन में अमरबेल बन, फलने का अधिकार न हो। ऋ.पृ.-89.
राजनीति का यह तकाजा है कि वह शासक शासन के योग्य नहीं होता जो जनता को पददलित करता है, यहाँ पर भी 'अमरबेल' प्रतीक से ऐसे शासकों की निन्दा की गयी है :--
मनुज महत्वाकांक्षी पर पर, निज अधिकार जमाता। अमरबेल-सा शोषक पर की, सत्ता पर इठलाता।। ऋ.पृ.-162.
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