Book Title: Rushabhayan me Bimb Yojna
Author(s): Sunilanand Nahar
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 329
________________ 3. व्यंजना गूढार्थ की अभिव्यक्ति के लिए कविगण व्यंजना शब्द शक्ति का उपोग करते आए हैं। व्यंग्यार्थ इसका मुख्य धर्म है। ऋषभायण वस्तुतः लोक और परलोक का साक्षात् संगम है इसलिए भाषा भी आवश्यकतानुरूप वाच्यार्थ से लक्ष्यार्थ और लक्ष्यार्थ से व्यंग्यार्थ के सांचे में ढलती गयी है। युगलों का प्रारंभिक जीवन शांत, निर्विकार किंतु विद्या, भाषा, पठन-पाठन, काव्य, शब्दकोष आदि के ज्ञान से शून्य था। उनके इस अबोधमय जीवन के दृश्य को दिवस में तिरोहित नक्षत्रों के बिम्ब से व्यंजित किया गया है - पठन, पाठन, काव्य भाषा, शब्द कोश वितर्कणा सब तिरोहित है दिवस में, ज्यों नखत की अर्पणा। ऋ.पृ. 10 तालफल के आघात से नरशिशु की मृत्यु के पश्चात् उसके माता-पिता के मन में एक ऐसा भय समा गया, जिसका कोई निदान नहीं। यहाँ 'मन में अनबूझा सा कम्पन' तथा जीवन के ठहरने के व्यंग्यार्थ से मृत्यु की भयावह स्थिति का उद्घाटन किया गया है - दूर स्थित मां और पिता का, अनजाने तन सिहर गया मन में अनबूझा-सा कंपन, जीवन जैसे ठहर गया। ऋ.पृ. 40 यही नहीं, नर शिशु की अकाल मृत्यु से युगलों में मृत्यु के प्रति भय भाव की व्यंजना 'छुई-मुई' वनस्पति से भी की गयी है - काल-मृत्यु से परिचित था युग, असमय मृत्यु कभी न हुई प्रश्न रहा होगा असमाहित, बनी मनःस्थिति छुई-मुई । ऋ.पृ. 41 पुष्प के खिलने की आतुरता से जीवन विकास को भी व्यंजित किया गया है। जैसा कि भाई की मृत्यु के पश्चात् सुनन्दा अपने पिता से कहती है - पिता ! कहाँ अब मेरा भाई, मझे छोड क्यों चला गया ? एक पुष्प खिलने को आतुर, बिना खिले ही चला गया। ऋ.पृ. 41 कल्पवृक्षों के कार्पण्य से युगलों की क्षुधा पीड़ा की अभिव्यंजना मुरझाई 309]

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