Book Title: Rushabhayan me Bimb Yojna
Author(s): Sunilanand Nahar
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 328
________________ नदियों के जल से परिपूर्ण सागर की अतृप्ति के लक्ष्यार्थ से भरत की वैभव जन्य अतृप्ति का भी बिम्ब सृजित किया गया है। भरत के समर्पण परक संदेश से व्यथित उनके सहोदर सोचते हैं कि - इतनी नदियों का जल लेकर, नहीं हुआ यह सागर तृप्त दर्प बढ़ा है पा पराग रस, मधुकर आज हुआ है दृप्त । ऋ. पृ. 193 'बाढ़' के लक्ष्यार्थ से 'भरत की महत्वाकांक्षा को भी चित्रित किया गया है। अट्ठानबे पुत्र भरत की महत्वाकांक्षा को लक्षित कर पिता ऋषभ से कहते है पूर नीर का आया प्रभुवर ! उसको दो नूतन तट-बंध । ऋ. पृ. 196 सोलह कलाओं से परिपूर्ण चन्द्रमा के बिम्ब से नीति-निपुण सचिव की पारदर्शी मंत्रणा को लक्षित करते हुए भरत कहना चाहते हैं कि आकाश में जो गरिमामय स्थान कलाधर का होता है, राज्य में वही स्थान सचिव का होता है जैसे, ऋषभ - सुत के सचिव हो तुम, स्थान गरिमापूर्ण है देख लो सोलह कला से, चन्द्रमा परिपूर्ण है । ऋ. पृ. 223 बिम्ब निष्पादन में रूढ़ा लक्षणा का प्रयोग भी कवि ने खूब किया है। 1. पर अचल हिमालय अपनी बात कहेगा । 2. प्रासाद - पंक्ति ने नृपति भरत को देखा । 3. घर नहीं वश में विवश वह, पूर्णतः परतंत्र है । - ऋ. पृ. 181 ऋ. पृ. 186 ऋ.पू. 227 इस प्रकार ऋषभायण में लक्षणा शब्द शक्ति के प्रयोग से कवि ने अनेक समर्थ बिम्बों का निर्माण किया है । --00- 308

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