Book Title: Rushabhayan me Bimb Yojna
Author(s): Sunilanand Nahar
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 351
________________ मित्र! न मेरे वश की बात, जागृत है प्रज्ञा अवदात। क्रोध! बंधुवर! सुन लो मान! खोजो अपना-अपना स्थान। शांत धीर तब 'करण अपूर्व', बोला बंधु! न मैं था पूर्व । निर्मल श्रेणी मेरा स्थान, तर्क नहीं बदलो संस्थान। क्रोध मौन हो गया अरूप, अहंकार ने बदला रूप। माया का अस्तित्व विलीन, फिर भी लोभ रहा आसीन। ऋ.पू. 142-143 प्रकृति व मानव के साहचर्य भाव की अभिव्यक्ति निम्नलिखित पंक्तियों में देखी जा सकती है - जीता मानव तरू के साथ, तरू ने भी फैलाया हाथ। ऋ.पृ. 141 इसके अतिरिक्त निम्नलिखित उद्धरणों में भी मानवीकरण परक बिम्ब की छटा दिखाई देती है - 1. वह चला गया रवि जो प्रभात में आया। ऋ.पृ. 187 2. लोचन–कुवलय विहंस रहे ऋ.पृ. 39 3. इतने में उस महाकाल ने, अपना पंजा फैलाया, ऋ.पृ. 42 ऋ.पृ. 77 ___राग झांकता पूर्ण युवा बन, मीलितनयन विराग 5. चक्ररत्न की दिव्य विभा तब, दमकी बन नव बाला। ऋ.पृ. 163 6. दिग्वधू के मुख कमल पर, नयन हर मुस्कान है। ऋ.पृ. 218 इस प्रकार आचार्य महाप्रज्ञ मानवीकरण परक बिम्बों की स्थापना में पूर्णतः सफल हुए हैं। --00-- 1331

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