Book Title: Rushabhayan me Bimb Yojna
Author(s): Sunilanand Nahar
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 318
________________ नाटक, लासक, नृत्य अजन्मा, मानस तृप्त कुतूहल मुक्त हाथी, बकरी, गाय लब्ध पर, नर पशु हैं संबंध वियुक्त सिंह बाघ पर हिंस्त्र नहीं है, आकृति सौम्य, प्रकृति से शांत मच्छर, खटमल डांस नहीं है, निरूपद्रव वसुधातल कांत। ऋ.पृ. 8 युगलों की आवश्यकताओं को पूर्ण करने वाले सभी कल्पवृक्षों-चित्र, अनग्न, भुंग, गेहाकार, ज्योतिष-अंग, मणि-अंग, दीपांग, त्रुटितांग, चित्रांग, मदांग' के कार्य का चित्रण भी अभिधा शैली में किया गया है। शिशु जन्म के पश्चात् नामकरण (ऋषभ सुमंगला) के अवसर का दृश्य एवं उस परिवेश का उद्घाटन भी अभिधा की सहज भावभूमि पर हुआ है - नामकरण के क्षण में मरूदेवा, का सक्षम तर्क रहा ऋषभ स्वप्न ऋषभांकित वक्षस्, ऋषभ नाम अवितर्क रहा . साधु-साधु एक स्वर में कह, युगल सभी उल्लसित हुए ऋषभ नाम का संबोधन पा, किसलय तक उच्छवसित हुए। कन्या की अभिधा सुमंगला, मंगलमय उज्जवल वेला ।। कुलकरवर श्रीनाभिराज के, घर में आज लगा मेला | ऋ.पृ. 36 ऋषभ विवाह का दृश्य भी अभिधामूलक है। विधि विधान से परे, बनावट से दूर मात्र पाणिग्रहण की स्वीकारोक्ति से दाम्पत्य जीवन में प्रवेश करने की सहजवृत्ति का बिम्ब भी दर्शनीय है - मंडप की रचना नहीं, न च वेदी का नाम नहीं साक्ष्य है अग्नि का, सब कुछ अभी अनाम । मंत्रोच्चारक है नहीं, रचा गया ना मंत्र केवल पाणिग्रहण ही, है विवाह का तंत्र। लिखा गया समुदाय का, एक नया अध्याय । युग-युग की इति पर हुआ, स्थापित नव आम्नाय । मन से मन का मिलन ही, है वास्तविक विवाह सामाजिक अब बन रहा, जीवन एक प्रवाह । ऋ.पृ. 50 ano

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