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नहीं पाते। कंठावरोध हो जाता है, जिससे उनका शरीर स्तम्भ की भाँति जड़वत
दिखाई देने लगता है
सजल नेत्र कंपित-सी वाणी, कंठकला अवरुद्ध,
स्तब्ध हुआ तनु जड़ित स्तम्भ सा, पल-पल बुद्ध अबुद्ध ।
ऋ. पृ. 84 माँ मरूदेवा की मनसभित्ति पर निर्मित स्वप्न बिम्ब का चित्र देखे गए स्वप्नों को स्थिरता प्रदान करता है! वे कुलकर नाभि से कहती हैं कि हे स्वामी मेरी मनस भित्ति पर स्वप्न बिम्ब का चित्र अंकित हो गया है, जो आश्चर्य जनक है
बोली मरूदेवा, हाँ हाँ हाँ मैंने अचरज देखा है,
स्वमिन् ! मेरी मनस- भित्ति पर, स्वप्नबिम्ब की लेखा है ।
ऋ. पृ. 34 नारियों के वेणी बंधन का बिम्बात्मक प्रयोग भी कवि ने किया है । उत्तर दक्षिण दिशा में स्थित हिमालय की दोनों चोटियाँ ऐसी सुशोभित हो रही हैं जैसे 'वनिता' के शीश पर वेणी बंधन सुशोभित होता है
हिमगिरि के भाल स्थल पर हैं दो श्रेणी वनिता के सिर राजमान ज्यों वेणी ।
ऋ. पृ. 179
अध्ययन में तन्मय छात्रा के स्थिर बिम्ब से देश की सीमा का चित्र भी उकेरा गया है। रणभेरी बजने के पश्चात् भरत को अपने सम्मुख बहली देश की दिखाई देती हुई सीमा ऐसी प्रतीत हो रही है जैसे वह स्वयं छात्रा के रूप में तन्मय होकर प्रगति का पाठ पढ़ रही हो
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बहली की सीमा सम्मुख दीख रही है,
जैसे छात्रा बन तन्मय सीख रही है ।
ऋ. पृ. 249
पलकों के न गिरने की क्रिया के आधार पर भी स्थिर बिम्ब का निर्माण किया गया है । दृष्टि युद्ध के अंतर्गत भरत और बाहुबली एक दूसरे की ओर अपलक दृष्टि से देखते हैं। इस क्रिया में कई प्रहरों तक किसी की पलकों का निपात तक नहीं होता
दोनों अपलक पलकों ने भी, निश्चत रहकर दिया प्रकाश ।
पल भर भी स्वामी को तम का, नहीं प्रतनु भी हो आभास । ऋ.पू. 277
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