________________ में बिम्ब का संगत अवलोकन तभी होगा जब काव्य में उनकी संगति औचित्य पूर्ण होगी। रस को काव्य का प्राण माना गया हैं, किन्तु वह सहृदयों को आकर्षित करने में तभी समर्थ होगी, जब उसमें भावों, अलंकारो आदि का प्रयोग विषय अथवा वस्तु सापेक्ष हो, यह वस्तु या विषय सापेक्षता ही औचित्य रूप में प्रस्तुत होती है जिससे स्पष्टतः बिम्ब का बोध होता है। रस संकर औचित्य के रूप में क्षेमेन्द्र का निम्नलिखित उदाहरण दृष्टव्य है - सत्यं मनोरमा रामाः सत्यं रम्या विभूतयः। किंतु मतांग नापांग भंग लोलं ही जीवितम् / / (66) / यहां शांत रस के प्रभाव से श्रृंगार रस की प्रस्तुति की गई है। यहां जीवन की क्षणभंगुरता में मदमाती रमणी के 'चपल कटाक्ष' को बिम्बायित किया गया है इस श्लोक में 'कटाक्ष' के साथ 'चपल' विशेषण का प्रयोग जीवन की क्षणभंगुरता को 'कटाक्ष की तीव्रता व क्षणिकता से चाक्षुष बिम्ब के रूप में प्रस्तुत करती है। पाश्चात्य समीक्षा में बिम्ब विषयक संकेत : ऐतिहासिक दृष्टि से पाश्चात्य जगत में सबसे पहले 'होमर' के महाकाव्य 'इलियड' एवं 'ऑडेसी' से पाश्चात्य समीक्षा चिंतन का सूत्रपात हुआ। 'इलियड' महाकाव्य में 'ट्राय' के विश्वप्रसिद्ध युद्ध का चित्रण किया गया है। इसमें जहाँ युद्ध में योद्धाओं के शौर्य का वर्णन किया गया है वहीं हेलेन एवं पेरिस की प्रेमकथा का रूपांकन मूलभूत मानवीय अनुभूतियों के परिप्रेक्ष्य में किया गया है। इस महाग्रंथ में होमर की प्रतिभा और कल्पना शक्ति उस नवोन्मेष काल में श्लाघनीय रही है। उस युद्ध में क्रूर एवं हृदयहीन योद्धा जिन मार्मिक क्षणों से गुजरे उसके प्रभावशाली वर्णन में होमर की कल्पना एवं उसकी यर्थाथ दृष्टि विशेष रूप से अवलोकनीय है। कल्पना के कारण स्फुट रूप में भाव बिम्बों का बिखराव महाकाव्य में देखा जा सकता है। दूसरी कृति में ओडेसी महाकाव्य में युद्ध समाप्ति के पश्चात् 'ओडेसियस' के वापस लौटने की कथा वर्णित है जो अनेक भयानक और नाटकीय घटनाओं से युक्त होने के कारण इसमें सूक्ष्म मनोभावनाओं की प्रभावपूर्ण अभिव्यंजना हुयी है। 111]