________________ से देखता है। जितना ही वह प्रकृति एवं सृष्टि में व्याप्त होता जाता है, उतना ही उसका अंतर्मन जीवन की एक-एक परतों को खोलता जाता है। कवि उच्च मार्ग से प्रेरित होकर काव्य की रचना करते हैं, भावना, उदात्त कल्पना तथा अनुभूति के संगम से आनंद की सृष्टि करते हैं। पी.बी.शेली ने कवि को विधाता मानते हुए लिखा है कि "कवि उन विराट परछाइयों को प्रतिबिम्बित करने वाले दर्पण होते हैं जिनको भविष्य, वर्तमान पर प्रक्षेपित करता है, शब्द जो अभिव्यक्त करते हैं, वे उसे नहीं समझते, तुरही जो युद्ध के लिए आह्वान करती है, उसे नहीं पता कि वह क्या प्रेरणा देती है, वह प्रभाव जो संवेदित नहीं किया जाता, पर संवेदित होता है, कवि वह प्रभाव है जो संवेदित नहीं किया जाता पर संवेदित होता है, कवि इस संसार के मान्यता वंचित विधाता हैं |(12) इस प्रकार मन की संवेदनाओं का सीधा संबंध इन्द्रियों से है और इन्द्रियों का सम्बन्ध बाह्य जगत के वस्तु व्यापारों और उनके गुणों से है। आधुनिक कवि बिम्बों का कविता में अधिकाधिक प्रयोग करते हैं। बिम्बों के माध्यम से कवि की भावनाएँ, अनुभूतियाँ और कल्पनाएँ चित्रमय होती चली जाती हैं। प्रेरक भाव-व्यंजक भाषा और कवि की कल्पना पर ही बिम्ब-विधान की सफलता और उत्कृष्टता निर्भर करती है, बिम्ब केवल वर्णित वस्तु का मानसिक पुनर्प्रत्यक्ष ही नहीं कराती बल्कि उन्हें किसी गूढ अनुभूति में लपेट कर हृदयग्राह्य भी बना देते हैं।(73) इस प्रकार बिम्ब-विधान कवि के व्यक्तित्व के अनुरूप ही हुआ करता है। कवि की स्वानुभूति, उसके संस्कार, उसके जीवनानुभव, उसका अध्ययन, उसका मस्तिष्क जिस प्रकार होगा, उसी पर उसका बिम्ब-विधान निर्भर करेगा। कवि अपनी कविता के द्वारा किसी न किसी रूप में जीवन की व्याख्या करता है। जीवन के प्रति उसकी अनुभूति जितनी गहरी होगी, काव्य में उसकी पैठ उतनी ही अधिक होगी। प्रमोद वर्मा के शब्दों में "काव्यानुभूति न तो जीवनानुभूति से विलग कोई स्वतः सापेक्ष अनुभूति है और न मात्र ऐन्द्रिक अनुभूति है। काव्य रचना की प्रक्रिया कुछ इस प्रकार चलती है कि कवि की ऐन्द्रिक अनुभूति के साथ कल्पना और विचार जुड़ते हैं, घुलते मिलते हैं। स्मृति की गुहा से निकलकर कुछ 118]