________________
रयणसार
हेयोपादेय से रहित जीव मिथ्यादृष्टि है
ण वि जाणइ कज्ज- मकज्जं सेय-मसेयं पुण्ण पावं हि । तच्च-मतच्चं धम्म- मधम्मं सो सम्म उम्मुक्को ।। ४० ।।
२४
अन्वयार्थ – [ जो ] ( कज्ज-मकज्ज ) कार्य अकार्य/कर्तव्यअकर्तव्य ( सेय-मसेयं ) कल्याण-अकल्याण (पुण्ण - पानं ) पुण्यपाप ( तच्च - मतच्चं ) तत्त्व - अतत्त्व ( धम्म - मधम्मं ) धर्म-अधर्म को ( ण वि ) नहीं ( जाणइ ) जानता है ( सो ) वह (हि ) निश्चय से ( सम्म उम्मुक्को ) सम्यक्त्व से रहित है ।
-
अर्थ- जो जीव कर्तव्य-अकर्तव्य/ कार्य- अकार्य, कल्याण-अकल्याण/ श्रेय अश्रेय, पुण्य-पाप, तत्त्व अतत्त्व, धर्म-अधर्म को नहीं जानता है वह निश्चय से / वस्तुतः सम्यक्त्व से रहित है ।
हेयोपादेय रहित जीव के सम्यक्त्व कहाँ ?
-
ण वि जाणइ जोग्ग- मजोग्गं णिच्च- मणिच्चं हेय मुवादेयं । सच्च-मसच्वं भव्व-मभव्वं सो सम्म उम्मुक्को । । ४१ । ।
-
अन्वयार्थ – [ जो ] ( जोग्ग - मजोग्गं ) योग्य-अयोग्य ( णिच्चमणिच्चं ) नित्य-अनित्य ( हेय मुवादेयं ) हेय उपादेय ( सच्च-मसच्चं ) सत्य-असत्य ( भव्व-मभव्वं ) भव्य - अभव्य को ( ण वि ) नहीं ( जाणइ ) जानता है ( सो ) वह ( सम्म उम्मुक्को ) सम्यक्त्व से रहित हैं ।
अर्थ- जो जीव योग्य-अयोग्य, नित्य- अनित्य, हेय - उपादेय, सत्यअसत्य, भव्य - अभव्य को नहीं जानता है वह सम्यक्त्व से रहित हैं । लौकिक जनों की संगति योग्य नहीं
लोइय जण - संगादो, होड़ महा- मुहर - कुडिल दुब्भावो । लोइय- संगं तह्या, जोइवि तिविहेण मुच्चाहो ।। ४२ ।।