Book Title: Rayansar
Author(s): Kundkundacharya, Syadvatvati Mata
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

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Page 97
________________ ८८ रयणसार आतापन योग धारण करना, पर्वत पर रहना, नदी तट पर तपस्या करना, गुफा, कंदरा आदि में निवास करना तथा श्मशान व उद्यान आदि में रहना निरर्थक हैं। और वाचना - पृच्छना - अनुप्रेक्षा- आम्नाय तथा धर्मोपदेश रूप सब प्रकार का ज्ञानाध्ययन - शास्त्र स्वाध्याय निरर्थक है। जैसा कि कहा है बाह्य ग्रंथ विहीनानां दरिद्र मनुजाः स्वभावतः सन्ति । यः पुनरन्तः संगत्यागी लोके स दुर्लभो जीवः || १॥ अर्थात् दरिद्र मनुष्य तो बाह्य परिग्रह से रहित स्वयं होता ही है अर्थात् बाह्य परिग्रह के त्यागी मनुष्य दुर्लभ नहीं हैं, किन्तु जो अन्तरंग परिग्रह का त्यागी है, लोक में वही दुर्लभ है [ अ.पा.. पृ ४४५ ] | पात्र - - विशेष - दंसणसुद्धो धम्म- ज्झाण-रदो संग वज्जिदो णिसल्लो । पत्त-विसेसो भणियो सो गुण हीणो द विवरीदो । । ११७ । । सम्माइ-गुण-विसेसं पत्त-विसेसं जिणेहिं पिट्ठिं । तं जाणिऊण देइ सुदाणं जो सो हु मोक्ख- रओ ।। ११८ । । ( युग्पं ) अन्वयार्थ - ( दंसण सुद्धो ) सम्यग्दर्शन से शुद्ध ( धम्मज्झाण-रदो ) धर्मध्यान में रत ( संग वज्जिदो ) परिग्रह से रहित (सिल्लो) शल्य रहित ( पत्त - विसेसो ) विशेषपात्र ( भणियो ) कहे गये हैं (गुण-हीणो ) जो इन गुणों से रहित हैं ( सो दु ) वे तो ( विवरीदो ) विपरीत / अपात्र हैं । ( सम्माइ-गुण-विसेसं ) जिसमें सम्यक्त्वादि विशेष गुण हैंवह ( जिणेहिं ) जिनेन्द्र देव ( पत्त-विसेसं ) विशेष पात्र ( णिद्दिद्धं ) कहा है ( जो ) जो जीव ( तं ) उस पात्रविशेष को ( जाणिऊण ) जानकर (सुदाणं ) उत्तम दान, निर्दोष दान को ( देइ ) देता है ( सो हु ) निश्चय ही वह मोक्षमार्ग में रत है । अर्थ- -जो निर्दोष सम्यग्दर्शन अर्थात् २५ दोषों रहित निर्मल सम्यक्त्व

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