Book Title: Rayansar
Author(s): Kundkundacharya, Syadvatvati Mata
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

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Page 134
________________ रयणसार तत्त्व का/आत्म के शुद्ध स्वरूप का ज्ञान होता है । श्रुत के अभ्यास से परमात्मा अरहंत देव के द्रव्य-गुण-पर्याधी को जाना जाता हैं : कहा भा हैजो जाणदि अरहतं, दव्वत गुणत पज्जयत्तेहिं । सो जाणदि अप्पाणं मोहं खलु तम्स जादि लयं ।। प्र.सा.८७ || जो अरहंत देव को उनके द्रव्य-गुण-पर्याय से जानता है, वह अपनी आत्मा को जानता है और उसका मोह क्षय को प्राप्त होता हैं। यहाँ तात्पर्य यह है कि श्रुताभ्यास से परमात्मा का ध्यान बनता है, श्रुताभ्यास परमात्मध्यान का संबल है। परमात्मा के ध्यान से स्वआत्मा की पहिचान होती है अतः परमात्मध्यान, शुद्ध आत्मध्यान का कारण है । परमात्मा का ध्यान कर्मों के क्षय का निमित्त/ कारण है और कर्मों का क्षय होने पर ही मुक्ति सुख को प्राप्त किया जा सकता है । अत: मोक्षसुख के मूल श्रुतज्ञान का प्रतिदिन शुद्धभाव से अभ्यास करो। धर्मध्यान मुक्ति का बीज धम्म-ज्झाणभासं करेइ तिविहेण भाव सुद्धेण । पररूप-झाण-चेट्ठो, तेणेव खवेइ कम्माणि ।।१६२।। ___ अन्वयार्थ [जो ] ( तिविहेण सुद्धेण ) मन-वचन-काय की शुद्धि पूर्वक ( धम्म-ज्झाणब्भासं करेइ ) धर्म्यध्यान का अभ्यास करता हैवह ( परमप्प-झाण चेट्ठो ) परमात्मा के ध्यान में स्थित होता ( तेणेव ) उसी से ( कम्माणि ) कर्मों का ( खवेइ ) क्षय करता है। ___अर्थ-जो भव्यात्मा मन-वचन-काय त्रिकरण की विशुद्धिपूर्वक धर्मध्यान का अभ्यास करता है वह अरहंत-सिद्ध परमात्मा के ध्यान में स्थित होता हुआ देह-देवालय में स्थित परमानन्दमयी निजशुद्धात्मा में स्थित होता हुआ कर्मों का क्षय करता है । ___ जीवों की परिणति अशुभ-शुभ व शुद्ध तीन प्रकार की हैं इनमें अशुभ । सर्वथा हेय ही है। शुभ परिणति धर्मध्यान रूप है, उसका आश्रय ही मोक्षमार्ग है, श्री भागचन्द कवि ने लिखा है...

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