Book Title: Rayansar
Author(s): Kundkundacharya, Syadvatvati Mata
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

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Page 136
________________ रमाइपर वह काल लब्धि तीन प्रकार से है-- १. कर्मयुक्त कोई भी भव्यात्मा अर्द्ध-पुद्गल परावर्तन नाम के काल के शेष रहने पर प्रथम सम्यक्त्व के ग्रहण के योग्य होता है। इससे अधिक काल के शेष रहने पर नहीं होता, संसार स्थिति संबंधी यह एक काल लब्धि है। २. दूसरी काललब्धि का संबंध कर्मस्थिति से है । उत्कृष्ट स्थिति वाले कर्मों के शेष रहने पर या जघन्य स्थिति वाले कर्मों के शेष रहने पर प्रथम सम्यक्त्व का लाभ नहीं होता । जब बँधने वाले कमों की स्थिति अन्तः कोड़ा-कोड़ी सागर पड़ती है, और विशुद्ध परिणामों के वश से सत्ता में स्थित कर्मों की स्थिति संख्यातहजार सागर कम अन्तः कोड़ा-कोड़ी सागर प्राप्त होती हैं तब [ अर्थात् प्रायोग्यलब्धि के होने पर ] यह जीव प्रथम सम्यक्त्व के योग्य होता है । तीसरी काललब्धि भव की अपेक्षा है—जो भव्य है, संज्ञी है, पर्याप्तक है और सर्वविशुद्धि है, वह प्रथम सम्यक्त्व को उत्पन्न करता है [ स.सि.२/ ३/१०] चदुर्गाद मिच्छो सणणी, पुण्णो गब्भज विसुद्ध सागारो। पढमुवसमं स गिण्हदि पंचमवर लद्धि चरिमझि ॥२ल.सा.।। ___ भुक्ति-मुक्ति का सुख कामदुहिं कप्पतरु चिंता-रयणं रसायणं परमं । लद्धो भुंजइ सोक्खं जहट्टियं जाण तह सम्मं ।।१६४।। ___अन्वयार्थ-[जह ] जैसे [ भाग्यवान् पुरुष ] ( कामदुहि ) कामधेनु ( कप्पतरूं ) कल्पवृक्ष ( चिंता-रयण ) चिन्तामणि रत्न । ( रसायणं ) रसायन ( लद्धो ) प्राप्त करके ( परमं सोक्ख भुंजइ ) संसार के उत्कृष्ट सुखों को भोगता है ( तह ) वैसे ही ( सम्मं ) सम्यग्दृष्टि/ सम्यग्दर्शन को प्राप्त करने वाला जीव ( जहट्ठियं ) यथा स्थित क्रमशः उत्तम सुखों को प्राप्त करता है ( जाण ) ऐसा जानो । अर्थ-जिस प्रकार कोई भाग्यवान् पुरुष कामधेनु--एक प्रकार की

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