Book Title: Rayansar
Author(s): Kundkundacharya, Syadvatvati Mata
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

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Page 128
________________ रयणसार ११९ रोने लगा । यही स्थिति हम संसारी भव्यात्माओं की है । भव्य जीवों ! जब तक सम्यक्त्वरूपी पिता की अंगुली पकड़े रखोगे, तुम्हें गरीबी में भी आनन्द! सुख प्राप्त होगा और सातिशय पुण्य बंधकर परलोक सुधार मुक्ति की प्राप्ति करोगे 1 और जिस क्षण सम्यक्त्वरूपी पिता की अंगुली पकड़कर चलना छोड़ दोगे उस ही क्षण चक्रवर्ती की सम्पदा, संसार की समस्त उपाधियाँ भी दुखकर ही होंगी। पापानुबंधी पुण्य से परलोक बिगड़ेगा । संसार-भ्रमण कभी नहीं मिट पायेगा। अत: कैसे भी हो, एक बार सम्यक्त्वरूपी रत्न की प्राप्ति करने का पुरुषार्थ करो। ___रात्रिभोजन में कुशीलता है 'भुत्तो अयोगुलो-सइयो तत्तो अग्गि-सिखोवमो यज्जे । भुंजइ जे दुस्सीला रत्तपिंडं असंजतो ।। १५४।। अन्वयार्थ जैसे ( अग्गि-सिखोवमो ) अग्नि शिखा के समान ( तत्त ) तप्तायमान ( अयोगुलो-सइयो ) लोहे का गोला ( यज्जे ) पानी में डालने पर ( मुत्तो ) भक्षण करता है।खींचता है वैसे ही ( जे ) जो ( दुस्सीला ) शील रहित जीव ( रत्त-पिंडे भुंजइ ) रात्रि में भोजन को खाते हैं वे ( असंजतो) असंयमी हैं । अर्थ-जैसे अग्नि शिखा के समान तप्तायमान लोहे का गोला पानी में डालने पर चारों ओर से पानी को खींचता है, सारे पानी को सोख लेता है; वैसे ही जो कुशील, आचरणहीन मानव रात्रि में भोजन करते हैं वे चारों ओर पापों का संचय करते हुए निरन्तर खाना ही खाना चाहते हैं, भक्ष्यअभक्ष्य सभी को एकसाथ भक्षण करना चाहते हैं। ऐसे जीव संयमहीन असंयमी हैं। सम्यक्त्वरहित ज्ञानाभ्यास व अनुष्ठान संसार के हेतु णिक्खेव-पय-पमाणं सद्दालंकार-छंद लहियाणं । णाडय पुराण कम्मं, सम्मं विणा दीह-संसार ।।१५५।। १ "यह ब प्रति में उपानन्ध ?. १५४ है"।

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