Book Title: Raja aur Praja
Author(s): Babuchand Ramchandra Varma
Publisher: Hindi Granthratna Karyalaya

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Page 11
________________ राजा और प्रजा । जो इतनी प्रबल हो गई है वह क्यों ? शासनकर्ता हमारे यहाँके समाचारपत्रोंके किसी एकाध प्रबंध-विशेषको मिथ्या बतलाकर उसके सम्पादकको और यहाँ तक कि हतभाग्य मुद्रकको भी जेल भेज सकते हैं, किन्तु ब्रिटिश साम्राज्यके पथमें प्रतिदिन जो ये छोटे छोटे कैंटीले पेड़ बढ़ते जा रहे हैं उनका कौनसा विशेष प्रतिकार किया गया है ? ऐसी दशामें जब कि इन कँटीले वृक्षोंका मूल मनमें है तब उन वृक्षोंको उखाड़ फेंकनेके लिये उसी मनमें प्रवेश करना आवश्यक होगा। किन्तु पक्की और कबी सड़कोंके द्वारा अँगरेज लोग और तो सब जगह जाआ सकते हैं परन्तु दुर्भाग्यवश वे उस मनके अन्दर नहीं जा सकते । उस जगह प्रवेश करनेके लिये तो कदाचित् सिरको थोड़ा झुकाना पड़ता है । लेकिन अँगरेजोंका मेरुदण्ड कहीं झुकना चाहता ही नहीं। विवश होकर अँगरेज लोग अपने आपको यही समझानेकी चेष्टा करते हैं कि समाचारपत्रोंमें जो ये कड़वी बातें कही जाती हैं, ये जो सभाएँ होती हैं और राज्यतंत्रकी यह जो अप्रिय समालोचना हुआ करती है उसके साथ सर्वसाधारणका कोई सम्बन्ध नहीं है। ये सब उपद्रव केवल थोड़ेसे शिक्षित पुतली नचानेवालोंके ही उठाए हुए हैं। वे लोग कहते हैं कि अन्दर तो सभी बातें बहुत ठीक हैं और बाहर जो विकृतिका थोड़ा बहुत चिह्न दिखलाई देता है वह सब इन्हीं चतुर लोगोंका बनाया हुआ है । ऐसी अवस्थामें फिर अन्दर प्रवेश करके कुछ देखनेकी आवश्यकता रह नहीं जाती; केवल जिन चतुर लोगों पर सन्देह किया जाता है उन्हींको दण्ड देनेसे सब झगड़ा खतम हो • जाता है।

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