Book Title: Raja aur Praja
Author(s): Babuchand Ramchandra Varma
Publisher: Hindi Granthratna Karyalaya

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Page 75
________________ राजा और प्रजा । १४० जो स्वभावसे जरा अधिक उत्तेजनाशील होते हैं उनकी भर्त्सना करना भी हमारे लिये सहज हो जाता है । हम कहते हैं, तुम एकदम इतना छलाँग मारनेका हौसला न करते तो अच्छा होता । ___ हम हिन्दू विशेषतः बंगाली, बातोंमें चाहे जितना जोश प्रकट कर डालें, पर किसी साहसपूर्ण कार्यके करनेमें कदापि प्रवृत्त नहीं हो सकते—यह लज्जाजनक बात देशविदेश सभी जगह प्रसिद्ध हो चुकी है। इसके फलस्वरूप बाबूमण्डलीको खास तौरपर अँगरेजोंके निकट नित्य दुस्सह शब्दोंकी ठोकरें खानी पड़ती हैं । सब प्रकारके उत्तेजनापूर्ण वाक्य कमसे कम बंगालमें तो सब प्रकारसे निरापद हैं-उन्हें कहीं बाधा या विरोधका सामना नहीं करना पड़ता, इस सम्बन्धमें हमारे शत्रु या मित्र किसीको किसी तरहका सन्देह नहीं है। यही कारण है कि अबतक बातचीतमें, भावभंगीमें हमें कुछ भी ज्यादती प्रकट करते देखकर कभी दूसरोंने और कभी स्वयं हमारे आत्मीयोंने बराबर नाराजगी या खफगी प्रकट की है और हमारे असंयमकी दिल्लगी उड़ाना भी बुरा नहीं समझा है । वस्तुतः किसी बँगला अखबारमें या किसी बंगाली वक्ताके मुखसे जब हम अपरिमित उच्चाकांक्षामय वाक्योंको निकलते हुए देखते हैं तब खासकर अपनी जातिके लिये यह सोचकर हमें पानी पानी हो जाना पड़ता है कि जो दुःसाहसपूर्ण कामोंको करनेके लिये विख्यात नहीं हैं, उनके वाक्योंकी तीक्ष्णता उनकी दीनताका केवल मोर्चा साफ करती है-उसे और भी प्रकाशित कर देती है। वास्तवमें बंगाली जाति बहुत दिनोंसे भीरुताकी बदनामीको सिर झुकाकर सहती चली आ रही है । इसीसे प्रस्तुत घटनाके सम्बन्धमें न्याय-अन्याय, इष्ट-अनिष्ट, सभी विचारोंको तिलाञ्जलि देकर इस अपमानमोचनके उपलक्ष्यमें बंगालीको आनन्द हुए बिना नहीं रह सकता ।

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