Book Title: Raja aur Praja
Author(s): Babuchand Ramchandra Varma
Publisher: Hindi Granthratna Karyalaya

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Page 87
________________ समस्या। नीचे तलीमें पड़ा रहता है वही सच्चा तत्त्व है। एक अंगरेज समालोचकने रामायणकी अपेक्षा इलियडको श्रेष्ठ काव्य सिद्ध करते हुए लिखा है-"इलियड काव्य अधिकतर human है, अर्थात् उसमें मानव-चरित्रका वास्तवांश अधिक मात्रामें ग्रहण किया गया है। क्योंकि उसमेंका एकिलिस निहत शत्रुके शवको रथके पहियोंमें बाँधकर घसीटता फिरा है और रामायणके रामने पराजित शत्रुको क्षमा कर दिया है।" यदि क्षमाकी अपेक्षा प्रतिहिंसाके भावको मानव-चरित्रमें अधिक वास्तविक, अधिक स्वाभाविक माननेका अर्थ यह हो कि मनुष्यमें क्षमाकी अपेक्षा प्रतिहिंसाका भाव ही अधिक होता है, तब तो इन समालोचक साहबका निष्कर्ष अभ्रान्त ही मानना पड़ेगा। पर मानव-समाज इस बातको कभी न मानेगा कि स्थूल परिमाण ही सचाईके नापनेका एक मात्र साधन है; घर भरे अन्धकारकी अपेक्षा अंगुलभर स्थान भी न घेरनेवाली दीपशिखाको वह अधिक मानता है / जो हो, यह निर्विवाद है कि एक बार आँखसे देखकर ही इसकी मीमांसा नहीं की जा सकती कि मानव इतिहासके हजारों लाखों उपकरणोंमेंसे कौन प्रधान है कौन अप्रधान, कौन उपस्थित कालमें परम सत्य है कौन नहीं / यह बात माननी ही पड़ेगी कि उत्तेजनाके समय उत्तेजना ही सबकी अपेक्षा बड़ा सत्य जान पड़ती है / क्रोधके समय ऐसी कोई बात सत्यमूलक नहीं जान पड़ती जो क्रोधकी निवृत्ति करनेवाली हो। उस समय मनुष्य स्वभावतः ही कह बैठता है---" अपने धार्मिक उपदेश रहने दो। हमें उनकी जरूरत नहीं।" इसका कारण यह नहीं है कि धर्मोपदेश उसके प्रयोजनकी सिद्धिमें उपयोगी नहीं है और रोप उसमें भारी सहायक है; बात यह है कि उस समय वह वास्तविक उपयोगिताकी ओर दृष्टिपात करना ही नहीं चाहता, प्रवृत्ति

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