Book Title: Raja aur Praja
Author(s): Babuchand Ramchandra Varma
Publisher: Hindi Granthratna Karyalaya

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Page 18
________________ - राजा और प्रजा। करना और हम लोगोंका उपकार करना भी उन लोगोंके लिये उतना ही अधिक दुस्साध्य होता जायगा । भारतवासियोंकी निरन्तर निन्दा और उनके प्रति अवज्ञा प्रकट करके अँगरेजी समाचारपत्र भारतवर्षके शासनका कार्य और भी कठिन करते जा रहे हैं। और हम लोग अँगरेजोंकी निन्दा करके केवल अपने निरुपाय असंतोपकी ही वृद्धि कर रहे हैं। अबतक भारत पर अधिकार रखनेके सम्बन्धमें जो अभिज्ञता उत्पन्न हुई है उससे यह बात निश्चयात्मक रूपसे मालूम हो गई है कि अंगरेजोंके लिये डरनेका कोई कारण नहीं है। जब आजसे डेढ सौ वर्ष पूर्व ही इस प्रकार डरनेका कोई कारण नहीं था तब आजकलका तो कुछ कहना ही नहीं है। राज्यमें जो लोग उपद्रव मचा सकते थे अब उनके नाखून और दाँत नहीं रह गए और अभ्यासके अभावके कारण वे लोग इतने अधिक निर्जीव हो गए हैं कि स्वयं भारतवर्षकी रक्षा करनेके लिये सेना तैयार करना ही क्रमशः बहुत कठिन होता जा रहा है । लेकिन फिर भी अँगरेज लोग सेडिशन या राजद्रोहका दमन करनेके लिये सदा तेयार रहते हैं। इसका एक कारण है। वह यह कि प्रवीण राजनीतिज्ञ किसी अवस्थामें भी सतर्कताको शिथिल नहीं होने देते । जो सावधान रहता है उसका विनाश नहीं होता। ___ अतः बात केवल इतनी ही है कि अंगरेज लोग बहुत अधिक सावधान हैं । लेकिन दूसरी ओर अँगरेज यदि क्रमश: भारतद्रोही होते जायँ तो राजकार्यमें वास्तविक विघ्नोंका उत्पन्न होना सम्भव है। यद्यपि उदासीन भावसे भी कर्त्तव्यपालन किया जा सकता है; किन्तु जहाँ आन्तरिक विद्वेप हो वहाँ कर्त्तव्यपालन करना मनुष्यकी शक्तिके बाहर है।

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