Book Title: Raja aur Praja
Author(s): Babuchand Ramchandra Varma
Publisher: Hindi Granthratna Karyalaya

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Page 24
________________ ३१ अँगरेज और भारतवासी। है। अँगरेजोंको यह जतला देना होता है कि हम भी तुम्हीं लोगोंकी तरह हैं। और जहाँ कोई उनसे भिन्न बात निकल आती है तो उसे चटपट वहीं दबा देनेकी इच्छा होती है । आदम और हौआ ज्ञानवृक्षका फल खानेसे पहले जिस सहज वेशमें घूमा करते थे वह बहुत ही शोभायुक्त और पवित्र था, लेकिन ज्ञानवृक्षका फल खानेके बादसे लेकर जबतक इस पृथ्वीपर दरजीकी दूकान नहीं खुली थी तबतक इसमें सन्देह नहीं कि उन लोगोंका वेश आदि अश्लीलतानिवारिणी सभामें निन्दनीय समझा जाता था । हम लोगोंके लिये भी. यही सम्भव है कि नए आवरणमें हम लोगोंकी लजा दूर न होगी बल्कि ओर बढ़ जायगी। क्योंकि, अभीतक कपड़े सीनेका कोई ऐसा कारखाना नहीं खुला है जो सारे देशवासियोंके शरीर ढक सके । यदि हम इस प्रकार शरीर ढकना चाहेंगे तो एक तो ढके ही न जा सकेंगे और फिर इसके समान विडम्बनाकी वात और कोई हो नहीं सकती । जो लोग लोभमें पड़कर सभ्यतावृक्षका यह फल खा बैठे हैं उन लोगोंको बहुत ही परेशान होना पड़ता है। इन लोगोंको सिर्फ इसी लिये परदा टाँगकर सब काम करना पड़ता है कि जिसमें कोई अँगरेज यह न देख ले कि हम हाथसे खाते हैं या चौका लगाकर भोजन करने बैठते हैं। एटीकेट ( Ettiquete) शास्त्रमें यदि जरासी भी त्रुटि हो जाय, अथवा अँगरेजी भाषा बोलने में जरासी भी भूल हो जाय, तो वे उसे पातकके समान समझते हैं और अपने सम्प्रदायमें यदि वे आपसमें एक दूसरेके साहबी आदर्शमें कुछ भी कमी देखते हैं तो लजा और अवज्ञा अनुभव करते हैं । यदि विचारपूर्वक देखा जाय तो नंगे रहनेकी अपेक्षा इस अधूरे कपड़े पहननेमें ही और कपड़े पहननेकी निष्फल चेष्टामें ही वास्तविक अश्लीलता है-इसीमें यथार्थ आत्म-अवमानना है ।

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