Book Title: Raja aur Praja
Author(s): Babuchand Ramchandra Varma
Publisher: Hindi Granthratna Karyalaya

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Page 34
________________ राजा और प्रजा। पुराने जमानेकी डकैती और आज कलकी चोरीमें बहुत अन्तर है। आजकलके अपहरणमें प्राचीन कालका वह निर्लज असंकोच और बलका अभिमान रही नहीं सकता। आजकल अपने कार्यके सम्बन्धमें अपना ज्ञान उत्पन्न हो गया है, इस लिये आजकल प्रत्येक कार्यके लिये न्याय-विचारके सामने उत्तरदायी होना पड़ता है। इससे काम भी पहलेकी तरह सहजमें पूरा नहीं उतरता और गालियाँ भी खानी पड़ती हैं। यदि कोई पुराना डाकू दुर्भाग्यवश इस बीसवीं शताब्दीमें जन्म ग्रहण कर ले तो उसका अविर्भाव बहुत ही असामायिक हो जायगा। समाजमें इस प्रकारका असामयिक आविर्भाव सदा हुआ ही करता है। डाकू तो बहुतसे उत्पन्न होते हैं परन्तु वे सहसा पहचाने नहीं जाते। अनुपयुक्त समय और अनुपयुक्त स्थानमें पड़कर बहुतसे अवसरोंपर वे स्वयं अपने आपको ही नहीं पहचानते । इधर वे गाडीपर चढ़कर घूमते हैं, समाचारपत्र पढ़ते हैं, स्त्रीसमाजमें मीठी मीठी बातें करते हैं। कोई इस बातका सन्देह ही नहीं करता कि इस सफेद कमीज या काले कुर्तेमें राबिन हुडका नया अवतार धूम रहा है । युरोपके बाहर निकलकर ये लोग सहसा अपनी पूर्ण शक्तिसे प्रकाशित हो जाते हैं । धर्मनीतिके आवरणसे मुक्त उस उत्कट रुद्रमूर्तिकी बात हम पहले ही कह चुके हैं। लेकिन युरोपके समाजमें ही जो राखसे ढके हुए बहुतसे अंगारे हैं उनका ताप भी कुछ कम नहीं हैं। यही लोग आजकल कहते हैं कि बलनीतिके साथ यदि प्रेमनीति भी मिला दी जाय तो उससे नीतिका नीतित्व तो बढ़ सकता है परन्तु बलका बलत्व घट जाता है । प्रेम और दया आदिकी बातें सुननेमें तो बहुत अच्छी जान पड़ती है लेकिन जिस जगह हम लोगोंने रक्तपात करके अपना प्रभुत्व स्थापित किया है उस जगह जब नीतिदुर्बल नई

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