Book Title: Raja aur Praja
Author(s): Babuchand Ramchandra Varma
Publisher: Hindi Granthratna Karyalaya

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Page 30
________________ ४१ अँगरेज और भारतवासी। हमसे हाथ मिलावें बल्कि हमारे लिये यह भी आवश्यक है कि नौकरी परका हमारा वेतन बढ़ जाय । यदि आरम्भमें दो दिनतक हम साहब बहादरके यहाँ मित्रकी भाँति आते जाते हैं तो तीसरे दिन भिखमंगोंकी तरह उनके सामने हाथ फैलानेमें भी हमें लजा नहीं आती । इस लिये साहबके साथ हमारा जो सम्बन्ध होता है वह बहुत ही हीन हो जाता है। एक ओर तो हम इस लिये अपने मनमें नाराज हो जाते हैं कि अँगरेज हम लोगोंके साथ समानताका भाव नहीं रखते और तदनुकूल हमाग सम्मान नहीं करते और दूसरी ओर उनके दरवाजेपर जाकर हम भीख माँगना भी नहीं छोड़ते। जो भारतवासी अँगरेजोंसे मिलनेके लिये जाते हैं उन्हें वे अँगरेज अपने मनमें उम्मेदवार अनुग्रहप्रार्थी अथवा उपाधिके प्रत्याशी समझे बिना नहीं रह सकते। क्योंकि अँगरेजोंके साथ भेंट करनेका हमारे लिये और कोई कारण या सम्बन्ध तो है ही नहीं। उनके घरके किवाड़ बन्द हैं और हमारे दरवाजेपर ताला लगा है। तब आज अचानक जो आदमी अङ्गा और पगड़ी पहनकर कुछ शंकित भावसे चला आ रहा है, एक अभद्रकी भाँति अनभ्यस्त और अशोभित भावसे सलाम कर रहा है, यह नहीं समझ सकता कि मैं कहाँ बैहूँ और हिचक हिचककर बातें कर रहा है, उसके मनमें सहसा इतनी विरह-वेदना कहाँसे उत्पन्न हो गई जो वह चपरासीको थोड़ा बहुत पारितोषिक देकर भी साहबका मुख-चन्द्र देखने आ रहा है ? जिसकी अवस्था बहुत ही गई-बीती हो वह बिना बुलाए और बिना आदरके किसी भाग्यवानके साथ घनिष्टता बढ़ानेके लिये कभी. न जाय। क्योंकि इससे दोनों से किसी पक्षका मंगल नहीं होता। अँगरेज लोग इस देशमें आकर क्रमशः जो नई मूर्ति धारण करते जाते

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