Book Title: Raja aur Praja
Author(s): Babuchand Ramchandra Varma
Publisher: Hindi Granthratna Karyalaya

View full book text
Previous | Next

Page 31
________________ राजा और प्रजा । हैं, क्या उसका बहुत कुछ कारण हम लोगोंकी हीनता ही नहीं है ? इसलिये भी हम कहते हैं कि जब अवस्था इतनी बुरी है तब यदि हमारे सम्बन्ध और संघर्षसे अँगरेज लोग रक्षित रहेंगे तो उन लोगोंका चरित्र भी इतनी जल्दी विकृत न होगा । इसमें दोनों ही पक्षोंका लाभ है। अतएव सब बातोंका अच्छी तरह ध्यान रखकर राजा और प्रजाका आपसका द्वेष शान्त रखनेके लिये सबसे अच्छा उपाय यही जान पड़ता है कि हम लोग अँगरेजोंसे सदा दूर रहें और एकान्त मनसे अपने समस्त निकट-कर्तव्योंके पालनमें लग जायें । केवल भिक्षा करनेसे कभी हमारे मनमें यथार्थ सन्तोष न होगा । आज हम लोग यह समझते हैं कि जब हमें अँगरेजोंसे कुछ अधिकार मिल जायेंगे तब हम लोगोंके सब दुख दूर हो जायँगे । लेकिन यदि भीख माँगकर हम सारे अधिकार भी प्राप्त कर लेंगे तब हम देखेंगे कि हमारे हृदयमेंसे लांछना किसी प्रकार दूर ही नहीं होती । बल्कि जबतक हमें अधिकार नहीं मिलते तबतक हमारे मनमें जो थोड़ी बहुत सान्त्वना है अधिकार प्राप्त करने पर वह सान्त्वना भी न रह जायगी। हमारे हृदयमें जो शून्यता है जबतक उसकी पूर्ति न होगी तबतक हमें किसी प्रकार शान्ति न मिलेगी। जब हम अपने स्वभावको सारी क्षुद्रताओंके बन्धनसे मुक्त कर सकेंगे तभी हम लोगोंकी यथार्थ दीनता दूर होगी और तभी हम लोग तेजके साथ, सम्मानके साथ अपने शासकोंसे भेंट करनेके लिये जा आ सकेंगे। हम कुछ ऐसे पागल नहीं हैं जो यह आशा करें कि सारा भारतवर्ष पद, प्रभाव और अँगरेजोंके प्रसादकी चिन्ता छोड़कर, ऊपरी तड़क भड़क और यश तथा प्रसिद्धिका ध्यान छोड़कर, अँगरेजोंको

Loading...

Page Navigation
1 ... 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87