________________
३५ अँगरेज और भारतवासी। रहता है । जिन दिनों बालकको शिक्षा दी जाती है उन दिनों यदि उसे सांसारिक बातोंमें अधिक मिलने दिया जाय तो वह प्रवीण समाजमें गिने जानेकी दुराशासे प्रवीण लोगोंका अनुचित अनुकरण करके उचित समयसे पहले ही पक्क हो जायगा । वह अपने मनमें समझने लगेगा कि मैं एक गण्य माण्य व्यक्त हो गया हूँ। फिर उसके लिये नियमानुकूल शिक्षाकी आवश्यकता न रह जायगी-विनय उसके लिये व्यर्थ और निरर्थक हो जायगी।
जब पाण्डव अपना प्राचीन गौरव प्राप्त करने चले थे तब उन्होंने पहले अज्ञातवासमें रहकर बल संचित किया था । संसारमें उद्योग-पर्वसे पहले अज्ञातवास-पर्व होता है।
आजकल हम लोग आत्म-निर्माण और जाति-निर्माणकी अवस्थामें हैं। हम लोगोंके लिये यह अज्ञातवासका समय है।
लेकिन यह हम लोगोंका दुर्भाग्य है कि हमलोग बहुत अधिक प्रकाशित हो गए हैं-संसारके सामने बहुत अधिक आ गए हैं । हम लोग बहुत अपरिपक्क अवस्थामें ही अधीर भावसे अंडेके बाहर निकल पड़े हैं। इस प्रतिकूल संसारमें हमारे लिये यह दुर्बल और अपरिणत शरीर लेकर अपनी पुष्टि करना बहुत ही कठिन हो गया है । ___ संसारकी रणभूमिपर आज हम कौनसा अस्त्र लेकर खड़े हुए हैं ? केवल वक्तृता और आवेदन ही न ? हम कौनसी ढाल लेकर आत्मरक्षा करना चाहते हैं ? केवल कपट-वेश ही ? इस प्रकार कितने दिनोंतक काम चलेगा और इसका कहाँतक फल होगा ?
एक बार अपने मनमें कपट छोड़कर सरल भावसे यह स्वीकृत करनेमें क्या दोष है कि अभीतक हम लोगोंके चरित्र-बलका जन्म नहीं हुआ ? हम लोग दलबन्दी, ईर्षा और क्षुद्रतासे जीर्ण हो रहे हैं। हम