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रायपसेणइय सुत्तं
प्रवेशक
॥२५॥
पा. ४-आ प्रतनां पानां ६९ छे. प्रत्येक पानानी लंबाई १०॥ इंच अने पहोळाई ४m इंच छे. प्रत्येक पानामा १५ पंक्तिओ अने प्रत्येक पंक्तिमा ५५ थी ६० अक्षर छे. आमां टीकार्नु ग्रन्थान ३७७५ श्लोकनुं छे. आ प्रत वि. सं. १५७५ लखायेली छे. पनी पुष्पिका आ प्रमाणे छः
इति मलयगिरिविरचिता राजप्रश्नीयोपांगवृत्तिका समर्थिता ॥ छ॥ स्वस्ति संवत् १५७५ समये वैशाष शुदि १३ शुक्रवासरे। श्रीखरतरगच्छे भट्टारक श्री जिनराजरि तत् सिष्य उपाध्या श्री राजसुंदर तस्यार्थे सांभवत्यागोत्रे साधु श्री गोपीचन्द लिखापितं दत्तं ।
पा. ५-आ प्रतना पानां ५९ छे. प्रत्येक पानानी लंबाई १३॥ इंच अने पहोळाई ५ इंच छे. प्रत्येक पानामा १६ पंक्तिमो अने प्रत्येक पंक्तिमा लगभग ६५ अक्षरो छे. आमां ग्रन्थान ३७०० श्लोकनुं छे. आ प्रत वि. सं. १४८५ मां लखायेलो छे. आमा पडिमात्रा छे. पाटणनी पांच प्रतोमां आ प्रत विशेष सुंदर छे. एनी पुष्पिका आ प्रमाणे छः इति मलयगिरि विरचिता राजप्रश्नीयोपांगवृत्तिकाः समर्थिता। समाप्तमिति । प्रत्यक्षर गणनया ग्रंथाग्रे ।
प्रत्यक्षरगणनातो ग्रन्थमानं विनिश्चितं । सप्तत्रिंशत् शतान्यत्र श्लोकानां सर्वसंख्यया ॥ संवत् १४८५ वर्षे भाद्रवा सुदि ३ शुक्रे उपांगवृत्तौ समाप्तमिति विप्र वैजनाथेन लिखितं ।
भा. १-आ प्रतनां पानां १२८ छे, आ त्रिपाठ प्रत छे. प्रत्येक पानामां बच्चे मूळ अने उपर नीचे टीका छे. आ प्रतनी लंबाई १० इंच अने पहोळाई ४ इंच छे. त्रिपाठ होवाथी पंक्ति तथा अक्षरोनी गणना एकसरखी जळवाई नथी. आमां मूळनें ग्रंथान २०७२ भने टीकामां ३७०० श्लोकनुं छे, आ प्रत वि. सं. १६८५नी छे. आनी पुष्पिका आ प्रमाणे छेः
श्री णमो जिणोण णमो सुयदेवयाए भगवइए नमो पण्णत्तिए भगवीए णमो भगवउ अरहउ पासस्स | पस्से सुपस्से पस्सवणीं णमो
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