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रायपसेणइय सुत्तं
प्रवेशक
॥२९॥
तेम ज विवरणना शब्दो उपर अंको मूकवामां आव्या छे. वांचनार मूळ शब्दनु विवरण क्यां छे ते सहेलाईथी मेळवी शके ए उद्देशथी आ प्रमाणे करवामां आन्यु छे. विवरणमा ज्या ज्या व्याकरण के कोशना अवतरणो आपेला छे, ते अवतरणो विवरणमाथी ससेडीने नीचे टिप्पणमां मूकेला छे, अने ते अवतरणोनां स्थळो मळी शक्यां एटलां मेळवीने नोंधेलां छे. विवरण वांचनार सळंग विवरण वांची शके ते माटे आ प्रमाणे अवतरणो टिप्पणमा मूक्यां छे. अने बनी शके पटलुं विवरणने स्पष्ट करवामां आब्युं छे. कोई जग्याप विवरणमां अंकोनो क्रम एकसरखो नथी रह्यो तेनु कारण विवरणनी अन्वयवाळी शैली छे. मूळपाठना वर्णकोनी पूर्ति माटे अने मूळना बीजा केटलाक पाठो समजाववा माटे उववाइअसूत्र, जीवाजीवाभिगमसूत्र अने नंदीसूत्रनो आ सूचना संपादनमा उपयोग करवामां आव्यो छे. प्रस्तुत ग्रन्थना ५९ मा पाने वीसमी कंडिकामां 'देवाई' एबुं पद छे. तेनुं जे विवरण विवरणकारे करेलुं छे ते विचारणीय छे. मारा विचार प्रमाणे 'देवाइ' एक पद नथी पण विवरणकारे तेने 'देवादि' कहीने एक पद का छे. मारा अभिप्रायने श्रीअभयदेवसूरिनो टेको पण छे. [जुओ पृ० ५९ ५ शब्द उपरतुं टिप्पण] सूत्रमांना चालु विषयने समजवा माटे ते ते स्थळे हांसियामां मथाळां मूकेलां छे. टिप्पणमा केटलाक मूळ शब्दोने प्रचलित भाषाना शब्दो साथे सरखावेला छे. पाछळ आ सूत्रनो सारभूत अनुवाद मूळसूत्रनी कंडिकावार मूक्यो छे. अनुवादमा पण उपयुक्त टिप्पणो आपेलां छे. ग्रन्थनी पाछळ विशेष नामोनो अने खास खास उपयुक्त पवा ऐतिहासिक शब्दोनो पृष्टवार अकारादि अनुक्रम आपेलो छे.
आभार
पाटणनी प्रतो मोकलवा माटे पूज्यपाद प्रवर्तक श्रीकांतिविजयजीना शिष्य प्रशिष्य मुनिराज श्रीचतुरविजयजी अने पुण्यविजयजीनो हुँ अनुगृहीत ढुं. अने भावनगरनी बन्ने प्रतो माटे धर्मबंधु रा. रा. कुंवरजीभाई तेमज शेठ डोसाभाई अभेचंदनी पेढीनो ९ आभार
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