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पुरुदेवचम्पूप्रबन्ध सुनन्दाके पुत्र बाहुबलीने भी दिग्विजयके बाद भरतके साथ हुए संघर्षसे विरक्त हो दीक्षा धारण कर ली और एक वर्ष तक खड़े-खड़े तपश्चरण कर केवलज्ञान प्राप्त किया। शेष भाइयोंने भगवान् वृषभदेवके समवसरणमें दीक्षा ग्रहण की थी। ब्राह्मी और सुन्दरी नामक दोनों पुत्रियोंने ब्रह्मचारिणी रहकर आर्यिकाके व्रत धारण किये। भगवान् वृषभदेव और भरतका जैनेतर भारतीय साहित्यमें उल्लेख
भगवान् वृषभदेव और सम्राट भरत इतने अधिक प्रभावशाली पुण्यपुरुष हुए हैं कि उनका जैनग्रन्थोंमें तो उल्लेख आया ही है उसके अतिरिक्त वेदके मन्त्रों, जैनेतर पुराणों तथा उपनिषदों आदिमें भी उल्लेख मिलता है। भागवतमें भी मरुदेवी, नाभिराय, वृषभदेव और उनके पुत्र भरतका विस्तृत विवरण दिया है । यह दूसरी बात है कि वह कितने ही अंशोंमें भिन्न प्रकारसे दिया गया है। इस देशका भारत नाम भी भरत चक्रवतीके नामसे ही प्रसिद्ध हुआ है।
यह वृत्तान्त हमें मार्कण्डेय, कूर्म, अग्नि, वायु, ब्रह्माण्ड, वाराह, लिंग, विष्णु तथा स्कन्द इन नौ पराणोंमें मिलता है जिसका विवरण उद्धरणों-सहित आदिपराण प्रथम भागकी प्रस्तावन
पुराण प्रथम भागकी प्रस्तावना (पृ. १४-१५ ) में दिया जा चुका है। उनके अतिरिक्त कुछ अन्य उल्लेख निम्न प्रकार है
"आसीत्पुरा मुनिश्रेष्ठः भरतो नाम भूपतिः । आर्षभो यस्य नाम्नेदं भारतखण्डमुच्यते ॥५॥ स राजा प्राप्तराज्यस्तु पितृपैतामहः क्रमात् । पालयामास धर्मेण पितृवद्रञ्जयन् प्रजाः ॥६॥"
-नारदपुराण, पूर्वखण्ड, अध्याय ४८ "अंहोमुचं वृषभं यज्ञियानां विराजन्तं प्रथममध्वराणाम् । अपां नपातमश्विना हुवे धिय इन्द्रियेण इन्द्रियं देत्तमोजः ॥"
--अथर्ववेद, कां० १९१४२।४ -सम्पूर्ण पापोंसे मुक्त तथा अहिंसक व्रतियोंके प्रथम राजा, आदित्यस्वरूप, श्रीवृषभदेवका मैं आवाहन करता हूँ। वे मुझे बुद्धि एवं इन्द्रियोंके साथ बल प्रदान करें। "अनर्वाणं वृषभं मन्द्रजिह्व बृहस्पतिं वर्धया नव्यमर्के ।'
-ऋ० मं १, सू. १९०, मं० १ मिष्टभाषी, ज्ञानी, स्तुतियोग्य, ऋषभको पूजासाधक मन्त्रों द्वारा वर्धित करो। वे स्तोताको नहीं छोड़ते।
"एव बभ्रो वृषभचेकितान यथा देव न हणीसे न हंसि ।' भगवान् वृषभदेव और ब्रह्मा
लोकमें ब्रह्मा नामसे प्रसिद्ध जो देव है वह जैन परम्परानुसार, भगवान् वृषभदेवको छोड़कर दूसरा नहीं है। ब्रह्माके अन्य अनेक नामोंमें अनलिखित नाम अत्यन्त प्रसिद्ध हैं-हिरण्यगर्भ, प्रजापति, लोकेश, नाभिज, चतुरानन, स्रष्टा और स्वयंभू । इनकी यथार्थ संगति भगवान् वृषभदेवके साथ ही बैठती है, जैसी कि आदिपुराणकी प्रस्तावना ( पृ. १५ ) में बतलायी जा चुकी है। ऋषभदेव और महादेव
___वर्तमानमें ग्यारहवें रुद्र सात्यकिको महादेवके रूपमें माना जाने लगा है परन्तु तथ्य यह है कि प्राचीनकालमें महादेव संज्ञा भगवान् वृषभदेव की ही थी। उनका वृषभ चिह्न था, उन्होंने कैलास पर्वतपर तपश्चरण कर निर्वाण प्राप्त किया था और रत्नत्रयरूप त्रिशूलके वे धारक थे। सही मायने में मदनका दाह भी उन्हींने किया था। वे ही शंकर-शान्तिके कर्ता और त्र्यम्बक-ज्ञान नेत्र सहित तीन नेत्रके धारक थे।
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