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जैन एवं इतर साहित्य में प्रतिपादित प्रायश्चित्त विधियाँ...139 2. औद्देशिक- साधु को भिक्षा देने के उद्देश्य से बनाया गया आहार प्रदान ___ करना औद्देशिक दोष है। 3. पूतिकर्म- शुद्ध आहार में अशुद्ध आहार मिश्रित कर देना, पूतिकर्म
दोष है। 4. मिश्रजात- गृहस्थ और साधु दोनों के उद्देश्य से बनाया गया भोजन आदि
साधु को देना मिश्रजात दोष है। 5. स्थापना- साधु को देने के लिए पृथक् रखे हुए आहार का दान करना __ स्थापना दोष है। 6. प्राभृतिका- मुनियों के आगमन के कारण पूर्व निर्धारित समय से पहले
भोज आदि का आयोजन कर साधु को भिक्षा देना, प्राभृतिका दोष है। 7. प्रादुष्करण- अंधकार युक्त स्थान को प्रकाशित करके अथवा अन्धकार से
प्रकाश में लाकर आहार देना, प्रादृष्करण दोष है। 8. क्रीत- साधु के लिए खरीदकर भिक्षा देना, क्रीत दोष है। 9. प्रामित्य- साधु के लिए किसी से उधार लेकर आहार आदि देना, प्रामित्य
दोष है। 10. परावर्तित- वस्तुओं की अदला-बदली करके साधु को भिक्षा देना,
परावर्तित दोष है। 11. अभिहत- साधु के लिए अन्य स्थान से आहार आदि लाकर देना,
अभ्याहृत दोष है। 12. उद्भिन्न- साधु के निमित्त ढके हुए या लाख आदि से मुद्रित पात्र को
खोलकर घी, शक्कर आदि देना, उद्भिन्न दोष है। 13. मालापहृत- साधु के निमित्त छींके आदि से, ऊपरी मंजिल से अथवा
भूमिगत कमरे से आहार लाकर देना, मालापहत दोष है। 14. आच्छेद्य- किसी वस्तु को उसके स्वामी की आज्ञा के बिना बलात
छीनकर देना, आच्छेद्य दोष है। 15. अनिसृष्ट- अनेक लोगों के अधिकार वाली वस्तु को उनकी आज्ञा के
बिना देना, अनिसृष्ट दोष है। 16. अध्यवपूरक- गृहस्थ के अपने लिए पकाये जा रहे भोजन में साधु के ___ लिए और अधिक डालकर बनाया गया भोजन देना, अध्यवपूरक दोष है।