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जैन एवं इतर साहित्य में प्रतिपादित प्रायश्चित्त विधियाँ... 199
प्रायश्चित्त आता है तथा आगाढ़योग का किंचित भंग होने पर आयंबिल का तथा सर्वथा भंग होने पर बेले का प्रायश्चित्त आता है।
लघुजीतकल्प के अनुसार
अथान्यविधिना साधुश्राद्धयोः पापनाशनः । प्रायश्चित्तविधिः शुद्धः शास्त्रदृष्ट्या निगद्यते।।1।। पूर्वं च पञ्चाचारेषु लङ्घितेषु प्रमादतः। प्रायश्चित्तं यतीनां च तत्तद्भेदैरुदीर्यते । । 2 ।। पूर्वं सूत्राशातनायां कामघ्नं शुद्धये विदुः । तस्यामर्थगतायां च चतुः पादः प्रकीर्तितः ।। 3 ।। आशातनायां हीनायां मध्यमोत्तमयोरपि । विलम्बः परमः शीतं क्रमात्तप उदाहृतम् ।।4।। सामान्याशातनायां तु परमाः पञ्च कीर्तिताः । काले चावश्यके स्वाध्यायप्रस्थापन उज्झिते ।।5।। विरसोऽक्षपरित्यागे व्याख्याने धर्म ईरितः । अविधाने निषद्याया गुरोर्नि: पाप उच्यते।।6।। कायोत्सर्गवन्दनयोस्त्यागेप्येवं तपः स्मृतम् । अनागाढेषु योगेषु देशभङ्गे च धातुहृत्।।7।। सर्वभङ्गे प्रशमनं प्रायश्चित्तं प्रचक्षते। तथाचागाढयोगेषु देशभङ्गे गुरुः स्मृतः ।।8।। सर्वभङ्गे सुन्दरं च पूतं सद्गुणनिन्दने । ज्ञानाचार इदं प्रोक्तं प्रायश्चित्तं मुनीश्वरैः ।।9।। ( आचारदिनकर भा. 2, पृ. 249 ) • प्रमादवश पंचाचार का उल्लंघन करने पर पूर्वनिर्दिष्ट यति प्रायश्चित्त अनुसार प्रायश्चित्त देना चाहिए।
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सूत्रों की आशातना करने पर आयंबिल तप का प्रायश्चित्त आता है, किन्तु सूत्रों का सम्यक् अर्थ न करने पर उपवास का प्रायश्चित्त आता है। आगम सूत्र की जघन्य आशातना में पुरिमड्ढ, मध्यम अशातना में एकासन एवं उत्कृष्ट आशातना में आयंबिल का प्रायश्चित्त आता है।
शास्त्र की सामान्य आशातना करने पर पाँच एकासने का प्रायश्चित्त
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आता है।
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समय पर आवश्यक क्रिया न करने पर और स्वाध्याय - प्रस्थापना करके उसे बीच में छोड़ देने पर आयंबिल का प्रायश्चित्त आता है।
व्याख्यान के समय स्थापनाचार्य को स्थापित न करने पर अथवा जान बूझकर लापरवाही कर देने पर उपवास का प्रायश्चित्त आता है।
• गुरु के आसन की आशातना करने पर अथवा गुरु से ऊँचे आसन पर स्थित होकर उन्हें वन्दना करने पर उपवास का प्रायश्चित्त आता है।