Book Title: Prayaschitt Vidhi Ka Shastriya Sarvekshan
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith

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Page 302
________________ 236... प्रायश्चित्त विधि का शास्त्रीय पर्यवेक्षण नियम पूर्वक सोने पर निद्रा में वीर्यपात हो जाये तो उपवास युक्त प्रतिक्रमण, यदि सामायिक करके नियम पूर्वक सोते हुए वीर्यपात हो जाये तो प्रतिक्रमण सहित तीन उपवास, यदि कोई मुनि आसक्ति पूर्वक स्त्री से भाषण करे तो प्रतिक्रमण सहित उपवास, यदि स्त्री का स्पर्श हो जाये तो प्रतिक्रमण पूर्वक उपवास, किसी मुनि के मन में स्त्री का चिंतन होने पर प्रतिक्रमण सहित उपवास का प्रायश्चित्त आता है। • यदि किसी मुनि का आर्यिका के साथ एक बार मैथुन भंग हो जाए तो प्रतिक्रमण सहित पंचकल्लाण, यदि अनेक बार मैथुन सेवन करे तो पुनर्दीक्षा, यह दुष्प्रवृत्ति लोगों को ज्ञात हो जाये और उसके उपरान्त भी उसका त्याग न करे तो देश निष्कासन का प्रायश्चित्त आता है। • एक बार उपकरण संग्रह की इच्छा होने पर उपवास, एक बार ममत्व पूर्वक उपकरण रखने पर एक उपवास, यदि अन्य लोगों से दान दिलवाये तो पंचकल्लाण, यदि सब परिग्रहों को रखें तो पुनर्दीक्षा का प्रायश्चित्त आता है। • मुनि रोग आदि के कारण एक रात्रि में चारों प्रकार का आहार करें तो तीन उपवास, यदि रोग आदि के कारण जल ग्रहण करें तो एक उपवास, यदि कोई मुनि अपने दर्प से अनेक बार भोजन करें तो पुनर्दीक्षा प्रायश्चित्त है। एक कोस अप्रासुक भूमि में गमन करें तो एक उपवास का प्रायश्चित्त है । यदि कोई मुनि वर्षाकाल में तीन कोस तक प्रासुक भूमि में गमन करे तो एक उपवास, यदि कोई मुनि वर्षाकाल के समय दिन में दो कोस अप्रासुक मार्ग में गमन करे तो एक उपवास, यदि कोई मुनि वर्षा काल में रात्रि में एक कोस गमन करे तो चार उपवास, यदि शीतकाल में दिन के समय छः कोस अप्रासुक भूमि में गमन करे तो एक उपवास, यदि शीतकाल में रात्रि के समय चार कोस प्रासुक मार्ग पर गमन करे तो एक उपवास, यदि गर्मी के दिनों में नौ कोस प्रासुक भूमि में गमन करने पर एक उपवास, यदि गर्मी के दिनों में छ: कोस अप्रासुक भूमि में गमन करे तो एक उपवास तथा यदि गर्मी में रात्रि में छः कोस अप्रासुक मार्ग से गमन करे तो दो उपवास का प्रायश्चित्त है । यदि मुनि बिना पींछी के सात पैर तक चले तो एक कायोत्सर्ग तथा बिना पींछी के एक कोस गमन करे तो एक उपवास है। यदि मुनि घुटने से चार अंगुल ऊपर तक पानी में गमन करे तो एक उपवास और इसके आगे प्रति चार अंगुल पर दुगने - दुगने प्रायश्चित्त हैं।

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