Book Title: Prayaschitt Vidhi Ka Shastriya Sarvekshan
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith

View full book text
Previous | Next

Page 311
________________ जैन एवं इतर साहित्य में प्रतिपादित प्रायश्चित्त विधियाँ...245 संघस्थ भिक्षु-भिक्षुणियों द्वारा नियम पालन में शिथिलता वर्त्तने या अवहेलना करने पर उन्हें दण्ड दिया जाता है। दण्ड विधान का मूल प्रयोजन भिक्षुभिक्षुणियों को असत्कर्मों से दूर करते हुए घिनौने कृत्यों से सदैव भयभीत बनाए रखना है। बौद्ध साहित्य में दण्ड के दो प्रकार वर्णित हैं1. कठोर दण्ड और 2. नरम दण्ड। कठोर दण्ड-इस विभाग में पाराजिक एवं संघादिसेस जैसे दण्ड आते हैं। इसे दुठुलापत्ति, गरुकापत्ति, अदेस नागामिनी आपत्ति, थुल्लवज्जा आपत्ति, अनवसेसापत्ति आदि नामों से जाना जाता है। नरम दण्ड-इस वर्ग में उक्त दोनों दण्ड को छोड़कर शेष सभी दण्डों का अन्तर्भाव होता है। इसे अदुठुल्लापत्ति, लहुकापत्ति, अथुल्लवज्जा आपत्ति, सावसेसापत्ति, देसनागामिनी आपत्ति आदि नामों से कहा जाता है। (जैन और बौद्ध भिक्षुणी संघ, पृ. 145) बौद्ध संघ में जिन अपराधों के कारण भिक्षु-भिक्षुणियों को दण्ड दिया जाता है उन्हें आपत्ति कहते हैं। भिक्खुनीपातिमोक्ख के अनुसार बौद्ध परम्परा में आठ प्रकार के प्रायश्चित्तों का विधान उपलब्ध होता है 1. पाराजिक 2. संघादिशेष 3. नैसर्गिक 4. पाचित्तिय 5. अनियत 6. प्रतिदेशनीय 7. सेखिय और 8. अधिकरण समय। ___ 1. पाराजिक-यह प्रायश्चित्त प्रमुख रूप से हिंसा और चोरी के लिए दिया जाता है। बौद्ध परम्परा में पाराजिक प्रायश्चित्त में अपराधी भिक्षु या भिक्षुणी को संघ से पृथक् कर दिया जाता है तथा उन्हें संन्यास जीवन के अयोग्य मान लिया जाता है। यहाँ पर पाराजिक प्रायश्चित्त के योग्य निम्न अपराध माने गये हैं। इन अपराधों के करने पर भिक्षु-भिक्षुणी को पाराजिक प्रायश्चित्त देते हैं। 1. संघ में रहकर मैथुन सेवन करना। 2. बिना दी हुई वस्तु ग्रहण करना। 3. मनुष्य आदि की हत्या करना। 4. बिना जाने और देखे अलौकिक बातों का दावा करना। 5. कामासक्त होकर कामुक पुरुष का हाथ पकड़ना आदि।

Loading...

Page Navigation
1 ... 309 310 311 312 313 314 315 316 317 318 319 320 321 322 323 324 325 326 327 328 329 330 331 332 333 334 335 336 337 338 339 340