Book Title: Prayaschitt Vidhi Ka Shastriya Sarvekshan
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith

View full book text
Previous | Next

Page 327
________________ उपसंहार...261 मुनि को दोष सेवन के दण्डस्वरूप पाँच कल्याणक परिमाण तप दिया गया है और वह उन्हें ज्येष्ठानुक्रम से वहन करने में असमर्थ है, तो आचार्य उसके लिए अनेक विकल्पों का निर्देश करते हैं। स्वरूपत: पाँच उपवास, पाँच आयम्बिल, पाँच एकासना, पाँच पुरिमड्ढ और पाँच नीवि-इन पच्चीस दिनों का उपवास आदि के क्रम से प्रत्याख्यान करने पर पाँच कल्याणक प्रायश्चित्त का निर्वहन होता है। जो इस रूप में वहन नहीं कर सकता है, आचार्य उसे सानुग्रह दस उपवास का निर्देश देते हैं। यह भी संभव न हो तो इस प्रायश्चित्त के अनुपात से दुगुने-दुगुने के क्रम से वहन करवाते हैं जैसे बीस आयंबिल या चालीस एकासना या अस्सी पुरिमड्ढ या एक सौ साठ नीवि करवाते हैं। ____द्वितीय विकल्प के अनुसार यदि पाँच कल्याणक परिमाण तप को क्रमश: न कर सकें तो दूसरा, तीसरा आदि करवाकर शेष कल्याणकों को विच्छिन्न क्रम से करवाते हैं। तृतीय विकल्प के अनुसार यदि अपराधी मुनि यथाक्रम या विच्छिन्न क्रम से करने में भी असमर्थ हो तो अपवादत: चार, तीन, दो अथवा एक कल्याणक भी करवाते हैं। इस प्रकार निर्धारित रूप से किन्हीं प्रायश्चित्तों में अशक्यता के अनुसार भी परिवर्तन किया जा सकता है।16 उक्त वर्णन के आधार पर हम पाते हैं कि जैन आम्नाय में प्रायश्चित्तदानविधि का स्वरूप अत्यन्त सूक्ष्म है। यहाँ बाह्य एवं आभ्यन्तर परिस्थितियों की अपेक्षा कभी तुल्य अपराध में भिन्न एवं भिन्न अपराध में भी तुल्य प्रायश्चित्त दिया जाता है। इसी तरह अल्प दोष का सेवन करने पर अधिक एवं अधिक दोष के आसेवन पर अल्प दण्ड भी दिया जाता है। प्रायश्चित्त दान की इस विविधता का मुख्य कारण अपराधी की मनोवृत्ति एवं उसकी शारीरिक क्षमता तथा अपराध जन्य घटनाओं की सूक्ष्मता व स्थूलता है। ____ श्रमण संस्कृति की दूसरी धारा बौद्ध संस्कृति प्रायश्चित्त व्यवस्था को अनिवार्य तत्त्व के रूप में स्वीकार करती है। जैसे जैन परम्परा में भिक्षु व भिक्षुणी के लिए विभिन्न प्रायश्चित्तों का विधान है वैसे ही बौद्ध परम्परा में भी दोनों के लिए अलग-अलग नियम हैं। बौद्ध संघ में भिक्खु पातिमोक्ख और भिक्खुनी

Loading...

Page Navigation
1 ... 325 326 327 328 329 330 331 332 333 334 335 336 337 338 339 340