Book Title: Prayaschitt Vidhi Ka Shastriya Sarvekshan
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith

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Page 324
________________ 258... प्रायश्चित्त विधि का शास्त्रीय पर्यवेक्षण प्रायश्चित्त के इस हानि क्रम की भाँति वृद्धि का क्रम भी है। जिस प्रतिसेवना की शुद्धि नीवि से हो सकती हो उसी प्रतिसेवना के लिए राग-द्वेष की तीव्रता के आधार पर पारांचित प्रायश्चित्त भी दिया जा सकता है। अध्यवसायों का चमत्कार तो इतना जबर्दस्त है कि कोई व्यक्ति अनेक मासिक प्रायश्चित्त स्थानों का सेवन कर एक बार में ही सभी की आलोचना कर लेता है और आगे प्रतिसेवना न करने का मानस बना लेता है, वह मासिक प्रायश्चित्त से मुक्त हो सकता है। किन्तु जो मुनि बार-बार प्रतिसेवना करके आलोचना करता है उसे उसी प्रतिसेवना के लिए मूल और छेद का प्रायश्चित्त भी प्राप्त हो सकता है । व्यवहारभाष्य के अनुसार कोई मुनि अशुभ परिणामों से निष्कारण ही मासिक प्रायश्चित्त जितनी प्रतिसेवना कर लेता है, वह एक पूरे मास के प्रायश्चित्त से ही विशुद्ध होता है, क्योंकि वह दुष्ट अध्यवसाय के कारण दूषित मनोवृत्तियों से प्रत्यावृत्त नहीं होता । कोई मुनि शुभ परिणामों के साथ बहुमासिक प्रायश्चित्त जितनी प्रतिसेवना करता है किन्तु वह एक मास के प्रायश्चित्त से भी विशुद्ध हो जाता है, क्योंकि ऐसा व्यक्ति दण्ड पाकर अपनी आत्मा में दुःखी होता है । 10 इस प्रकार शुभाशुभ अध्यवसायों के अनुसार अधिक प्रतिसेवना में भी अल्प एवं अल्प प्रतिसेवना में अधिक प्रायश्चित्त दिया जा सकता है। 4. ज्येष्ठ आदि स्थान के आधार पर प्रायश्चित्त बृहत्कल्पभाष्य की टीकानुसार आदि अर्थात छोटे-बड़े ज्येष्ठ आदि मुनियों के प्रति एक जैसा अपराध करने पर भी उनमें पद गरिमा के क्रम से बढ़ता हुआ प्रायश्चित्त प्राप्त होता है। जैसे गुरु के वचन का अतिक्रमण करने से - षड्गुरु, वृषभ के वचन का अतिक्रमण करने से-छेद, कुलस्थविर के वचन का अतिक्रमण करने से -मूल, गणस्थविर के वचन का अतिक्रमण करने से - अनवस्थाप्य, संघस्थविर के वचन का अतिक्रमण करने से - पारांचिक, प्रायश्चित्त आता है। 11 5. दुर्बलता आदि के आधार पर प्रायश्चित्त जिनशासन में दुर्बल व्यक्ति को कम प्रायश्चित्त दिया जाता है । एक शिष्य ने जिज्ञासा की -भगवन्! यदि दुर्बल व्यक्ति पश्चात प्राप्त छहमासिक का

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