Book Title: Prayaschitt Vidhi Ka Shastriya Sarvekshan
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith

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Page 312
________________ 246...प्रायश्चित्त विधि का शास्त्रीय पर्यवेक्षण 2. संघादिशेष-इस प्रायश्चित्त में संघ के सन्तोष हेतु अपराधी भिक्षु को कुछ रात्रियों के लिए आवास से बहिष्कृत कर दिया जाता है, किन्तु नियत अवधि के पूर्ण होने के पश्चात उसे पुन: भिक्षु संघ में प्रविष्ट कर देते हैं। बौद्ध परम्परा में संघादिशेष प्रायश्चित्त के योग्य निम्न 13 आपत्तियाँ मानी गयी हैं1. निद्रावस्था को छोड़कर अन्य किसी अवस्था में वीर्यपात करना। 2. वासना के वशीभूत होकर स्त्री-शरीर का स्पर्श करना। 3. वासना के वशीभूत होकर कामुक शब्दों से स्त्री की कामवासना को प्रदीप्त करना। 4. यह कहना कि मुझ जैसे धार्मिक पुरुष से संभोग करना उचित है। 5. स्त्री एवं पुरुष के मध्य काम सम्बन्ध स्थापित करने के लिए मध्यस्थता करना। 6. भिक्षु संघ की स्वीकृति के बिना भययुक्त एवं बिना खुली जगह में कुटिया का निर्माण करना। 7. भिक्षु संघ की स्वीकृति के बिना स्वयं और दूसरों के लिए भययुक्त स्थान में भिक्षु आवास बनवाना। 8. द्वेष एवं घृणा के वशीभूत होकर किसी अन्य भिक्षु पर पाराजिक अपराध का मिथ्या आरोप लगाना। 9. द्वेष एवं घृणावश किसी मुनि के छोटे अपराध को बड़ा पाराजिक अपराध बताना। 10. किसी सामान्य बात को लेकर संघ-भेद करवाना। 11. संघ-भेद करने वाले भिक्षु का समर्थन करना। 12. संघीय जीवन से स्वयं को पृथक् रखना। 13. दुराचरण करने के उपरान्त भी संघ से पृथक् नहीं होना। उक्त अपराध करने वाले भिक्षु-भिक्षुणी संघादिशेष प्रायश्चित्त के अधिकारी होते हैं। संघादिशेष की अपराधिनी भिक्षुणी को मानत्त दण्ड दिया जाता है। इसकी अवधि 15 दिन मानी गई है। ___ 3. नैसर्गिक-यह प्रायश्चित्त मुख्य रूप से चीवर एवं पात्र के सम्बन्ध में दिया जाता है। इस दण्ड में अपराधी व्यक्ति को कुछ समय के लिए अपने वस्त्रों

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