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जैन एवं इतर साहित्य में प्रतिपादित प्रायश्चित्त विधियाँ...217 होने पर तथा मैथुन योग्य भाषण करने पर प्रत्येक के लिए मूल प्रायश्चित्त आता है।
• स्त्रियों के स्तन आदि का स्पर्श होने पर आयंबिल का प्रायश्चित्त आता है।
• योगकाल में स्त्रियों के वस्त्रों का स्पर्श होने पर एकासन का प्रायश्चित्त आता है। कुछ गीतार्थों की मान्यतानुसार पूर्वदोष के प्रायश्चित्त के लिए एक सौ आठ बार नमस्कार मन्त्र का जाप करना चाहिए।
• अहंकार पूर्वक ब्रह्मचर्यव्रत का खण्डन करने पर दस उपवास का प्रायश्चित्त आता है।
• स्वप्न में ब्रह्मचर्य का भंग होने पर नमस्कारमन्त्र सहित एक लोगस्ससूत्र का कायोत्सर्ग करना चाहिए।
• आहार से खरड़ा हुआ पात्र रह जाये तथा शुष्क भोजन का संचय करें, तो प्रत्येक के लिए उपवास का प्रायश्चित्त आता है।
• रात्रि के समय डोरी, मुखवस्त्रिका, पात्र एवं तिरपणी आदि आहार से लिप्त रह जाए, तो उपवास का प्रायश्चित्त आता है।
• विगय द्रव्यों का संचय करने पर एवं उनका सेवन करने पर बेले का प्रायश्चित्त आता है।
• योगोद्वहन काल में शुष्क वस्तु का संचय करने पर पुरिमड्ढ का तथा आर्द्रित वस्तु का संचय करने पर नीवि का प्रायश्चित्त आता है। कुछ मुनिजन इसके लिए पुरिमड्ढ का प्रायश्चित्त भी बताते हैं।
• आधाकर्म से दूषित आहार करने पर उपवास तथा पूतिकर्म से दूषित आहार करने पर एकासन का प्रायश्चित्त आता है।
• आत्मक्रीत एवं परक्रीत से दूषित आहार करने पर आयंबिल का प्रायश्चित्त आता है।
• औद्देशिक से दूषित आहार करने पर एकासन का प्रायश्चित्त आता है। आहार सम्बन्धी शेष दोषों से दूषित आहार करने पर उपवास का प्रायश्चित्त आता है।
. अल्पकालीन स्थापना दोष से दृषित आहार करने पर उत्कृष्टत: नीवि का प्रायश्चित्त आता है। दीर्घकालीन स्थापना दोष से दूषित आहार करने पर