Book Title: Prayaschitt Vidhi Ka Shastriya Sarvekshan
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith

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Page 297
________________ जैन एवं इतर साहित्य में प्रतिपादित प्रायश्चित्त विधियाँ... 231 • यदि प्रमादवश प्रतिमाजी का कोई अंग या उपांग भंग हो गया हो तो उसकी शुद्धि के लिए शीघ्र ही खण्डित प्रतिमा जिस धातु की हो उसी परिमाण में वैसी ही नई प्रतिमा बनवायें। जब तक प्रतिमा तैयार नहीं हो तब तक, लघुमास आदि कठोर व्रत करें । वर्षाकाल में तीन, शीतकाल में दो एवं ग्रीष्मकाल में एक उपवास करना लघुमास तप है। फिर विधिवत प्रतिष्ठा करवाकर उसका सर्व शुद्धि से महामस्तकाभिषेक करें। कल्याण नामक तप भी करें - एक निर्विकृति, एक पुरुमण्डल, एक एकलठाणा एक आचाम्ल और एक क्षमण को कल्याणक तप कहते हैं। नीरस भोजन को निविकृति कहते हैं । मुनि की भोजनवेला पुरुमण्डल कहलाता है । एक स्थान पर स्थिर होकर भोजन करने को एकस्थान (एकलठाणा) कहते हैं। कांजी का आहार आयंबिल कहलाता है तथा एक उपवास को क्षमण कहते हैं। • जिसके द्वारा प्रतिमा खण्डित हुई हो वह दस हजार परिमाण महामन्त्र का जाप करें। मुनि-आर्यिका श्रावक एवं श्राविकाओं को सौ बार प्रसन्नता से दान दें अथवा चारों वर्णों के ब्राह्मण-क्षत्रिय - वैश्य - शूद्रों को सौ संख्या में दान दें। यथाशक्ति भोजन आदि करावें ।। 48-53।। • यदि स्वप्न में अथवा प्रमाद से व्रत का खंडन हो गया हो, तो उसकी शुद्धि हेतु महामस्तकाभिषेक करें। प्रतिदिन ज्ञान, ध्यान आदि से संयुक्त रहकर यथाशक्ति एक हजार पात्रों को यथोचित् दान करें । उपर्युक्त तप का आचरण करें। प्रत्येक अष्टमी-चतुर्दशी पर्व को उपवास करें। विधिवत उपवास आदि हो जाने पर अन्त में एक कल्लाण तप का आचरण करें ।। 54-57 ।। · षड्कर्मों के सम्पादन में यदि प्रमादवश बेइन्द्रिय, तेइन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय जीवों का घात हो जाये तो उससे उत्पन्न पाप की शान्ति के लिए क्रमशः एक, दो एवं तीन पौषध तथा सौ, दो सौ और तीन सौ महामन्त्र का जाप करना चाहिए। • असंज्ञी पंचेन्द्रिय का घात हो जाये तो उसके प्रायश्चित्त हेतु एक कल्लाण और विधिवत दश हजार (100 माला) महामन्त्र का जप करना चाहिए। पूर्ण शुद्धि से महामस्तकाभिषेक, दश कायोत्सर्ग तथा शक्ति अनुसार दान देना चाहिए। संज्ञी पंचेन्द्रिय का घात होने पर उपर्युक्त विधि से द्विगुणित प्रायश्चित्त के रूप में तीन उपवास और दो महामस्तकाभिषेक करें। 1165-6911


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