Book Title: Prayaschitt Vidhi Ka Shastriya Sarvekshan
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith

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Page 295
________________ जैन एवं इतर साहित्य में प्रतिपादित प्रायश्चित्त विधियाँ...229 सन्देह है। इस कृति में छेद पिण्ड की भाँति ही साधु के मूलगुण, उत्तरगुण एवं श्रावक-श्राविका सम्बन्धी सामान्य दोषों के प्रायश्चित्त बतलाये गये हैं। चौथी रचना आचार्य अकलंक विरचित है। जिसमें, गृहस्थ धर्म का पालन करते हुए उनमें संभावित सामान्य दोषों के प्रायश्चित्त का वर्णन है। दिगम्बर परम्परा में 'प्रायश्चित्त विधान' के नाम से भी एक रचना प्राप्त होती है। उसके रचयिता श्री आदिसागर अंकलीकर हैं जिन्हें 20वीं शती के महान आचार्यों में प्रमुख माना जाता है। यह रचना 108 गाथाओं में निबद्ध है। इसमें वर्णित प्रायश्चित्त विधि संक्षेप में इस प्रकार हैगृहस्थ सम्बन्धी दोषों के प्रायश्चित्त • यदि नित्य नैमित्तिक जापादि अनुष्ठानों का समय उल्लंधित हो जाये तो एक सौ आठ बार नमस्कार मन्त्र का जाप करना चाहिए। इससे प्रमादजन्य दोष की निवृत्ति हो जाती है।।9।। • पंचपरमेष्ठी की त्रिकाल पूजा करनी चाहिए। यदि प्रमाद वश एक काल का उल्लंघन हो जाये तो उसकी शुद्धि के लिए एक सौ आठ बार नमस्कार मन्त्र का जाप करना चाहिए।।10।। • परमात्मा की पूजा अर्चना एवं स्तुति तीनों संध्याओं में करने का नियम है। यदि इन कालों में से एक अथवा दो समय का उल्लंघन हो जाये तो क्रमश: नवकार मन्त्र की एक या दो माला गिननी चाहिए।।11।। • यदि एक दिवस के अनुष्ठान की हानि हो जाये तो उस शुद्धि के लिए जिन प्रतिमा का नब्बे कलशों से महाभिषेक करना चाहिए तथा तीन सौ पुष्प चढ़ाते हुए तीन सौ बार नवकार मन्त्र का जाप करना चाहिए।।13-14।। . • तीन दिन पर्यन्त यदि दैनिक धर्माचरण की हानि हो जाये तो प्रतिमा का नब्बे कलशों से अभिषेक कर एक हजार महामन्त्र (दश माला) का जाप करे।।17॥ • यदि चार दिन आचार विधि का पालन न हुआ हो तो उसकी शुद्धि हेतु प्रथम दिन की अपेक्षा चार गुणा कुम्भ स्थापित करें, सम्यक प्रकार से चारों को सूत्र वेष्टित करें। चारों दिशाओं में एक-एक तथा मध्य में चार कुम्भ स्थापित करे। पुन: चारों विदिशाओं में बारह कलश स्थापित करें। इस प्रकार विधिवत अभिषेक क्रिया कर अपने दोषों की शुद्धि की जानी चाहिए।।19॥

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