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जैन एवं इतर साहित्य में प्रतिपादित प्रायश्चित्त विधियाँ...191
परिपालन न करने पर इन चतुर्विध शिक्षाव्रतों की शुद्धि के लिए क्रमश: उपवास, आयंबिल, आयंबिल एवं उपवास तप का प्रायश्चित्त बताया गया है। ____ आचारदिनकर के अनुसार से बारहव्रतों में लगे दोषों से मुक्त होने के लिए जो प्रायश्चित्त ऊपर में कहे गये हैं वह श्रावक एवं श्राविकाओं में समान ही हैं। यद्यपि श्राविकाओं के लिए कुछ विशेष इस प्रकार हैं
• सामायिकव्रत या पौषधव्रत में स्त्री का यदि पुरुष से संस्पर्श हो जाये तो पच्चीस बार नमस्कार मन्त्र का जाप करना चाहिये।
• पाँचों अणुव्रतों के भंग होने पर स्त्रियों को दस उपवास का प्रायश्चित्त आता है।
• प्रत्याख्यान होने पर भी कारणवशात उन अतिचारों का सेवन करने पर उपवास का प्रायश्चित्त आता है।
• रात्रि में चतुर्विध आहार के त्याग की प्रतिज्ञा नहीं करने पर अथवा उसका भंग करने पर एकासना का प्रायश्चित्त आता है।
• अप्काय के जीवों को सन्तापित करने पर, षट्पदी (जू) को मारने पर एवं मठ या चैत्य में निवास करने पर-इन दोषों की शुद्धि के लिए दस उपवास का प्रायश्चित्त बताया गया है।
• श्राविका ने जिस तप का प्रत्याख्यान (नियम) किया है यदि उसका भंग होता है तो उसे पुन: वही तप करना चाहिए।
व्यवहार जीतकल्प के अनुसार
नियमे सति सामायिकस्याकणभङ्गयोः।।6।। उपवासोऽम्बुवह्नयादिस्पर्श तत्संख्यया लघुः। राज्ञां धर्मश्च देशावकाशिभङ्गे विलम्बकः।।70।। नियमे सति तत्काले पौषधाकरणे पुनः। साधुदानाद्यकरणे शोधनाय गुरुः स्मृतः।।1।। अथ पौषधभङ्गानां प्रायश्चित्तमुदीर्यते। नैषेधिक्याद्यकरणे स्थण्डिले वा प्रमार्जिते।।72।। कफमूत्रविडुत्सर्गे पृथिव्या अप्रमार्जिते। अप्रमार्जितवस्तूनां ग्रहणक्षेपयोरपि।।73।। अमार्जितकपाटानामुद्धाटनपिधानयोः। अप्रमार्जितकायस्य क्वचित्कण्डूयने तथा।।74।। अप्रमार्जितकुड्यादिस्तम्भावष्टम्भनेपि च। ईर्यापथाप्रतिक्रमे उपध्यप्रतिलेखने।।75।। एतेषु सर्वेष्वाख्यातं विरसं दोषघातनम्। परगात्रस्य संघट्टे ज्योतिषः स्पर्शने लघु।।76।। विनालोमपटीं