Book Title: Prayaschitt Vidhi Ka Shastriya Sarvekshan
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith

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Page 248
________________ 182...प्रायश्चित्त विधि का शास्त्रीय पर्यवेक्षण उनके साथ परिचय रखने पर आयंबिल का प्रायश्चित्त आता है। इन दोषों का सेवन अधिक तीव्रता से करने पर उपवास का प्रायश्चित्त आता है। • अरिहंत परमात्मा को वन्दन न करने पर, पूजा के लिए पत्ते आदि तोड़ने पर, जिनप्रतिमा हाथ से गिर जाने पर तथा प्रतिमा का विधिपूर्वक प्रमार्जन न करने पर पच्चीस-पच्चीस नमस्कारमन्त्र का जाप करना चाहिए। इन चतुर्विध दोषों की शुद्धि हेतु एकासन का प्रायश्चित्त भी कहा गया है। __• पार्श्वस्थ आदि मुनियों को गुरु बुद्धि से दान देने पर उस दोष की शुद्धि के लिए पच्चीस नमस्कार मन्त्र का जाप करना चाहिए। • पाटी, पुस्तक आदि ज्ञान के उपकरण हाथ से गिर जाने पर, उन्हें पैर लग जाने पर पाँच बार नमस्कारमन्त्र का स्मरण करना चाहिए। . गंठिसहियं एवं मुट्ठिसहियं प्रत्याख्यानों के भंग हो जाने पर तीन सौ नमस्कारमन्त्र का जाप करना चाहिए। • प्रत्याख्यान का भंग हुआ है या नहीं? ऐसी शंका होने पर पूर्व कथित जाप से तीन गुणा अर्थात नौ सौ बार नमस्कारमन्त्र का जाप करना चाहिए। . त्याग ने योग्य एवं विकृत आहार का दान देने पर पूर्ववत नौ सौ बार नमस्कारमन्त्र स्मरण करने का प्रायश्चित्त आता है। . . कुछ आचार्यों के अनुसार शंका आदि पाँच अतिचारों का आगाढ़ रूप से तथा अनागाढ़ रूप से सेवन करने पर प्रत्येक के लिए उपवास का प्रायश्चित्त आता है। व्यवहार जीतकल्प के अनुसार नियमे सति। देवार्चावन्दनादेरनिर्मितौ। पूर्वार्ध गुरुपादानां ध्वान्ते पादादिघट्टने।।35।। आशातने तथान्यस्मिञ्जघन्ये लघुरिष्यते। मध्यमे परमं शीतमुत्कृष्टं च प्रदर्श्यते।।36।। अस्थापितस्थापनायां पादस्पर्श तु निर्मदः। स्थापितस्थापनाचार्यपादघट्टे विलम्बकः।।37।। पातने स्थापनार्यस्य तस्य चैव प्रणाशने। तत्क्रियाया अकरणे क्रमाच्छान्तो रसो लघुः।।38।। व्रतिनामासनादाने मुखवस्त्रादिसंग्रहे। अम्बुपानेऽन्नाशने च क्रमाच्छोध नमादिशेत्।।39।। पूतं पूतमरोगं च सजलं मुनिसत्तमः। नियमे सति साधूनामप्रणामे विलम्बकः।।40।। गुरुद्रव्ये च वस्त्रे च द्रव्ये साधारणेपि च। उपभुक्ते तदधिकं देयं विनयपूर्वकम्।।41।। देवद्रव्यजलाहारपरिभोगे कृते

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