Book Title: Pravachan Sara Tika athwa Part 02 Gneytattvadipika
Author(s): Shitalprasad
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 8
________________ ३९ प्राणोके नागका उपाय ४० जीव विभाव पर्याय कथन ४१ आत्मज्ञानी ही निर्मोही होता है .. 0000 ४२ आत्माके शुभ अशुभ उपयोग ... ४३ शुद्धोपयोगका कथन ४४ मन वचन काय व उनकी क्रियाएं आत्मा से भिन्न है **** ५० अमूर्तीक जीवका मूर्तीक पुगलोंसे सब कैसे होता है .. • **** ४५ पुद्गलोका परस्पर वध कैसे होता है ४६ आत्मा पुगलके स्कधोका कर्ता नहीं है ४७ यह जगत सर्वत्र पुद्गलोसे भरा है ... ४८ जीव कर्म स्कंधोंका उपादान कर्ता नही है। ४९ जीवका असाधारण स्वरूप क्या है ६१ भाववन्धका स्वरूप.... ५२ वधके तीन भेट ५३ रागी कर्मोंको बांधता है ५४ रागद्वेप, मोहके शुभ अशुभ भेद ५५ शुद्धोपयोग मोक्षका कारण है ५६ आत्मा छः जीव कार्यों से भिन्न है ५७ आत्मा अपने ही परिणामोंका कर्ता है ५८ कर्मवर्गणांए आप ही कर्मरूप होती हैं BORD ... .... गाथा पृष्ठ ६२ २३९ ६३-६४ २३८ ६५ २४३ ६६-६९ २४६ ७० २५९ ७१-७३ २६२ .. ७४-७७ २७१ ७८ २८१ ७९ ८० ८३, ८४ २८४ २९२ ३०२ ३०६ ८६-८७ ३१३ ८८-८९ ३१७ ३२२ ३२४ ३२६ ९३-९४ ३३० ९६-९७ ३३३ ९८ ३४० ९० ९१ ९२

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