________________
१०]
श्रीप्रवचनसारटीका।
दूसरे परमाणुसे, हरएक जीव दूसरे जीवसे व हरएक कालाणु हरएक कालाणुसे सदृश है । इसीलिये जहां शुद्ध द्रव्य स्वभावकी अपेक्षासे देखकर कहा गया है वहाँ "सब्बे जीया सुद्धा" अर्थात सर्व जीव शुद्ध हैं ऐसा कहा गया है क्योंकि भिन्नर होनेपर भी स्वभाव एकका दूसरेके बराबर है।
द्रव्य तथा गुणोंमे परिणमन सदा हुआ करता है क्योकि द्रव्यत्व नामका सामान्य गुण सब द्रव्योंमें व्यापक है जिसके कारण कोई द्रव्य तथा उसके गुण कूटस्थ नित्य नही रह सक्ते किन्तु उनमे सदा पर्यायें या अवस्थाएं होती रहती है। पर्यायें एक दूसरेके पीछे नवीन २ होती रहती हैं। उनके दो भेद हैं-व्यंजन पर्याय या द्रव्यपर्याय, दूसरी अर्थपर्याय या गुणपर्याय । द्रव्यके प्रदेशोंमे परिणमनको अर्थात् आकार परिवर्तनको व्यंजन या द्रव्य पर्याय तथा अन्य गुणोमे परिणमनको अर्थ या गुणपर्याय कहते है। इन दोके भी दो दो भेद हैं-स्वभाव द्रव्य या व्यजन पर्याय । और विभाव द्रव्य या व्यंजन पर्याय तथा स्वभाव अर्थ पर्याय और विभाव अर्थ पर्याय । स्वभाव पर्यायें हरएक द्रव्यमे अपने स्वभावसे हुआ करती है। विभाव पर्याय अशुद्ध जीव और पुद्गलमे ही होती है। धर्म, अधर्म, आकाश, काल, सिद्ध आत्मा, तथा शुद्ध अवध परमाणुका जो आकार है वह स्वभाव व्यजन या द्रव्य पर्याय है। इनके आकारका प्रति समय एकसा रहना अन्य रूप न होजाना यही सहश परिणमन स्वभाव पर्याय है। ससारी जीवका नामकर्मके उदयके कारणसे नर, नारक, देव, तिर्यंच चार गतियोमे भ्रमण करते हुए नाना प्रकार अपने आकारका शरीरके प्रमाण बदलना सो