Book Title: Pratishthakalpa Anjanshalakavidhi
Author(s): Sakalchandra Gani, Somchandravijay
Publisher: Nemchand Melapchand Zaveri Jain Vadi Upashray Surat
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अञ्जन
प्र. कल्प
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परिणामे सुरतनी तपोधर्म- अनुमोदनानी गौरवप्रद प्रणालिकानुसार अषाढ वद ५ थी तपस्वीओना ज्ञानपूजनना वरघोडानी शरूआत थइ ते पर्युषणा बाद पण चालु रही. तेमां य नाना वाळक-बालिकाओनी अट्ठाई आदि तपश्चर्या तो सौने अचरज पाडे तेवी थइ. रविवारीय सामुदायिक आराधनाओथी पण वातावरण तपोमय बनी गये.
सोनामां सुगंधनी जेम सुरतना अने कदाच जिनशासनना इतिहासमा छल्ला केटलाय वर्षांमां न बन्यो होय तेत्रो सामुदायिक सिद्धितपनी आराधनानो प्रसंग ऐतिहासिक बनी गयो कोइक धन्यवडीए सिद्धितपनी जाहेरात थतां कोइनी कल्पनामां पण न होय तेम पू. आ. श्री विजय अशोकचंद्रसूरि म.; गणि श्री सोमचंद्र वि. मुनि श्री श्रमणचंद्र वि. मुनि श्री विश्व चंद्र वि. साध्वी श्री यशस्विनीश्रीजी; साध्वी श्री जयप्रज्ञाश्रीजी; साधी श्री कल्पविदाश्रीजी साध्वी श्री प्रीतिवर्षाश्रीजी; साध्वी श्री दिव्यनंदिताश्रीजी साध्वी श्री अभिनंदिताश्रीजी; साध्वी श्री विश्वनंदिताश्रीजी; साध्वी श्री प्रशांतयशाश्रीजी, साध्वी श्री कल्पपूर्णाश्रीजी आदि सहित ९ थी ८० वर्षना ४०० आराधको उल्लासभर सामुदायिक आराधनामां जोडाया अने पू. धर्मराजा गुरुदेवनी पूर्णकृपा तेमज शासनदेवनी अगम्य सहाये सर्वनी आराधना निर्विध्ने पूर्णताने पामी साथ साथ सामुदायिक ४०० उपरांत अट्ठाईओ पण उत्साहवर्धक बनी.
सामुदायिक सिद्धितपना उद्यापन महोत्सवे तो रंग राख्यो. शुं जैन के शुं जैनेतर - जिनशासनना सारभूत तप त्यागनी मुक्तकंठे अनुमोदना करवा लाग्या. श्री जिनेन्द्र भक्ति महोत्सव, 'श्री सूरिसम्राट् धर्मराजा नगर' मां तमाम तपस्वीओनुं सामूहिक ज्ञानपूजन; सतत स्मृतिपथमां रहे तेवो तपस्वीओ सहितनी भव्यातिभव्य रथयात्रा; केटला वर्षो बाद थयेल सुरतमां वसता तमाम जैनोनी
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