Book Title: Pratikraman Aalochana Samayik Path
Author(s): Jain Mumukshu Mahila Mandal
Publisher: Jain Mumukshu Mahila Mandal

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Page 27
________________ प्रतिक्रमण-आवश्यक ] [२१ एकेन्द्रियादिक जीवों का घात किया तथा अनर्थक प्रवर्तन किया व सदोष भोजन किया अथवा किसी जीव के प्राणों को पीड़ा पहुँचाई तथा कर्कश-कठोर मिथ्या वचन कहे अथवा किसी की विकथा की अथवा अपनी प्रशंसा करी अथवा अदत्त धन ग्रहण किया अथवा पर के धन में लालसा करी तथा पर की स्त्री में राग किया तथा धन परिग्रह आदि में लालसा करी, ये समस्त पाप खोटे किए - अब ऐसे पापरूप परिणाम से भगवान पंच परमगुरु, हमारी रक्षा करें। ये सब परिणाम मिथ्या हों। पंच परमेष्ठी के प्रसाद से हमारे पापरूप परिणाम न हों। ऐसे भावों की शुद्धता के लिए कायोत्सर्ग करके पंच नमस्कार पूर्वक नौ बार जाप करें। 'सामायिक' करने की विधि ___शरीर से शुद्ध होकर शुद्ध वस्त्र पहनकर किसी मन्दिर आदि एकान्त स्थान में 'सामायिक' करना चाहिये। प्रत्येक दिशा में तीन आवर्त व एक शिरोनति करके नमस्कार पूर्वक अपने आसन पर बैठना चाहिये व सामायिक की प्रत्येक क्रिया को मनन पूर्वक करना चाहिये। मन को पवित्र रखना चाहिये, जब तक सामायिक पूर्ण न हो अपने आसन को नहीं छोड़ना चाहिये। छोटे बालकों को अपने पास नहीं बैठाना चाहिये। 'सामायिक' के बाद एक वहत् कायोत्सर्ग करना चाहिये जिसमें कम से कम २७ बार या १०८ बार णमोकार मन्त्र का जाप करना चाहिये। सामायिक के समय दृष्टि व मन पर कड़ा नियन्त्रण रखना चाहिये। अन्त में पूर्ववत् ही दिशा वंदन करना चाहिये।

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