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प्रतिक्रमण - आवश्यक ]
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में से कोई भी दोष जाने अनजाने प्रमादवश हो गया हो तो अरहन्त भगवान से क्षमा माँगनी चाहिए ।
सामायिक पाठ बोलने में मात्रा, बिन्दी, पद, अक्षर, गाथा सूत्र आदि का हीनाधिक, विपरीत, अशुद्ध उच्चारण किया हो या और कोई दोष लग गया हो तो उनकी भगवान से क्षमा माँगनी चाहिये ।
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सामायिक काल में मन, वचन, काय से आत्मभावना में न ठहर कर उपयोग को अशुभ भावों में (मिथ्यात्व अविरति, प्रमाद, कषाय और योग) असावधानी से लगाया हो या और किसी प्रकार का पाप दोष लगा हो तो भगवान से क्षमा माँगनी चाहिए।
सामायिक में अतिक्रम, व्यतिक्रम, अतिचार, अनाचार, जान से, अनजान से किसी प्रकार का पाप दोष प्रमादजन्य हो गया हो तो भगवान से क्षमा माँगनी चाहिए ।
इस तरह क्रिया करने के बाद ६ बार ' णमोकार मन्त्र' का जाप्य करके “सामायिक" पूर्ण करनी चाहिए ।
'सामायिक' के छः भेद :
१. नाम - सामायिक- शुभ-अशुभ नाम को सुनकर राग-द्वेष नहीं करना, सो 'नाम - सामायिक' है।
२. स्थापना - सामायिक - कोई स्थापना प्रमाणादिक से सुन्दर है। और प्रमाणादि से हीनाधिक होने से असुन्दर है । उनके प्रति रागद्वेष का अभाव, सो ' स्थापना - सामायिक' है ।
३. द्रव्य - सामायिक - सुवर्ण, चाँदी, रत्न, मोती इत्यादि एवं मिट्टी, काष्ठ, पाषाण, कण्टक, राख, भस्म, धूलि इत्यादिक में राग-द्वेष रहित सम देखना, सो 'द्रव्य - सामायिक' है ।