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प्रतिक्रमण-आवश्यक ]
[२५ कृत्रिमाकृत्रिम, जिन चैत्य, चैत्यालय जहां--जहां हों उनको मेरा मन से, वचन से, काय से बारम्बार नमस्कार होवे।
(दक्षिण की ओर मुख करके पढ़े) दक्षिण दिग्विदिगन्तरतः केवलि जिन सिद्ध साधु
गणदेवाःये सर्वर्द्धि समृद्धा योगीशास्तानहं वंदे। भावार्थ-दक्षिण दिशा विदिशा में अरहंत, सिद्ध, साधु, केवलि, कृत्रिमाकृत्रिम, जिन चैत्य, चैत्यालय जहां जहां हों उनको मेरा मन से, वचन, काय से बारम्बार नमस्कार होवे।
_ (पश्चिम की ओर मुख करके पढ़े) पश्चिम दिग्विदिगन्तरतः केवलि जिन सिद्ध साधु
गणदेवाःये सर्वर्द्धि समृद्धा योगीशास्तानहं वंदे । भावार्थ—पश्चिम दिशा विदिशा में अरहंत, सिद्ध, साधु, केवलि, कृत्रिमाकृत्रिम, जिन चैत्य, चैत्यालय जहां जहां हो उनको मेरा मन से, वचन से, काय से बारम्बार नमस्कार होवे।
(उत्तर की ओर मुख करके पढ़े) उत्तर दिग्विदिगन्तरतः केवलि जिन सिद्ध साघुगण...
देवाःये सर्वर्द्धि समृद्धा योगीशास्तानहं वंदे। - भावार्थ-उत्तर दिशा विदिशा में अरहंत, सिद्ध, साधु, केवलि, कृत्रिमाकृत्रिम, जिन चैत्य, चैत्यालय जहां जहां हों उनको मेरा मन से, वचन से, काय से बारम्बार नमस्कार होवे । ___ (पश्चात् दण्डवत् प्रणाम करके अपने आसन पर स्थिर चित्त से बैठ जाना चाहिये।)